औरत की सबसे बड़ी कमजोरी क्या है
मैं सभी औरतों के बारे में तो नहीं कह सकती लेकिन अपने आस पास, सहेलियों व परिवार में देखा है।
करवाचौथ पर मैं काट-पीट नहीं करती और शादी के बाद आज तक करवाचौथ के त्योहार पर मैंने रात का खाना नहीं पकाया। एक दिन पहले रात में मैं आटा गूँध कर सोती हूँ व सुबह उस आटे से अपन लिए पराँठा व कुछ और दोपहर के लिए पति व बेटी के लिए रख देती हूँ। और रात में पति बाहर से खाना मँगवा लेते हैं।
इस बार भी यही कार्यक्रम था। सुबह उठ कर मैंने पूजा की, सरगी की, थोड़े पराँठे बना कर रखे व वापिस सोने चली गयी। थोड़ी देर में पता लगा कि मासिक धर्म भी शुरू हो गया। ऐसे में एक कप गरमा गर्म चाय चाहिये थी लेकिन वो नहीं पी सकती थी।
शाम को कथा सुनी व देखा कि चाँद के आने का नाम दूर तक नहीं था। अब बाहर से खाना जल्दी मँगवा लो तो वो रोटी अजीब सी हो जाती है। बच्चों को तो खिलाना था कुछ। मैंने फटाफट चावल उबाले और मूँग धुली दाल उबाल कर ऊपर से हींग-जीरे का छौंक दे दिया। कुछ काट-पीट भी नहीं हुई और बच्चों ने समय से खा भी लिया।
पति ने कहा भी था कि कुछ खाया नहीं, ऊपर से तबियत भी ठीक नहीं तो रहने दो मैं इनको ब्रेड का कुछ बना दूँगा और फिर खाना आने पर हम खा लेंगे सब। लेकिन नहीं! अपने लिए मैं बेशक खाना टाल जाती हूँ लेकिन बच्चों के लिए तो नहीं हो पाता चाहे जैसी हालत हो।
ऐसा ही मेरी माँ करती थी। एक बार मुझे याद है कि मेरा भाई दफ़्तर की पार्टी में गया था और उसे देर से लौटना था, उसका खाना वहीं था। माँ ने दाल-चावल बनाए थे और थोड़े से भाई के लिये भी रख दिये। जैसे ही वो आया उसने पूछा, “क्या बनाया। भूख लगी है। दफ़्तर के बाद सीधा वहाँ निकाल गया और छोटा-मोटा खाया अब रात के खाने में और भी देरी थी तो मैं जल्दी निकल आया”। माँ रात में सब समेटने के बाद फिर से उठी और भाई के लिए पराँठे सेक दिये।
अब सर्दियों में रजाई को छोड़ कर रात के ११-१२ बजे कौन रोटियाँ बनाना चाहता है?
ऐसे ही मेरी सहेलियों को भी मैंने देखा है जब वो शॉपिंग करने तो खुद की जाती हैं लेकिन लाती सब बच्चों या पति के लिए है।
अब ऐसी चेष्टा कोई करता नहीं कि औरतों को दूसरों का सोचना चाहिये, लेकिन ऐसा हो जाता है। शायद भगवान ने ऐसा बना कर भेजा होता है। इसमें कोई घमण्ड की बात नहीं, ना कोई अबला नारी वाली बात है। यहाँ किसी ने मुझे, या माँ को या सहेली को नहीं कहा था कि कोई उनके लिए कुछ करे लेकिन औरतों की कमज़ोरी है कि वो खुद को परिवार में कम तवज्जो दे बाक़ी सब के लिए सोचती हैं। अब सही है या ग़लत- बहस हो सकती है लेकिन अगर आप देखें कि स्कूल से आते ही बच्चा, “माँ कहाँ है?”, पूछता है और पति आते ही बच्चों से पूछेंगे, “तुम्हारी माँ कहाँ है?”। अब औरत की सबसे बड़ी कमज़ोरी उसकी ताक़त भी बन जाती है।
हर बार काम की बात नहीं होती। मुझे लगता है घर के सब सदस्य यह जानते हैं कि माँ सबके लिए करती है इसीलिए “माँ कहाँ है?” पूछते हैं। क्यूँकि माँ से ही घर है।
Credit: Kriti Sharma (quora.com)