Sahir Ludhyanvi

Life Of Sahir Ludhyanvi




Life Of Sahir Ludhyanvi
Life Of Sahir Ludhyanvi 


1943 में साहिर कॉलेज में थे और  अपने आपको ‘साहिर’ यानि की शायर मनवाने और अपना संग्रह ‘तल्खिया’ छपवाने के लिए लुधियाना से लाहौर आए थे.

1945 में जब उनके कविता संग्रह ‘तल्खिया’ प्रकाशित हुआ तबसे उन्होंने कामयाबी की सीढ़िया चढ़ना शुरू कर दिया था.




साहिर प्रसिद्द अरबी पात्र ‘अदब-लतीफ़’ और ‘शाकाहार’ लाहोर के संपादक बने.1948 में साहिर बहुत ख्याति प्राप्त कर चुके थे.

बम्बई की फिल्मी दुनिया से निकलकर वे लाहौर में शरणार्थी की तरह रहते थे.लेकिन साहिर वहां खुश नहीं थे क्यों की उन्हें वहां एक ही तरह के लोग दिखाई देते थे यानि वह सब एक ही मत को और एक ही धर्म को मानने वाले थे.


लिखने की ज़्यादा आज़ादी नहीं थी और न ही कोई अपने विचार व्यक्त कर सकता था.लेकिन साहिर के लिए लाहौर छोड़ना इतना भी आसान नहीं था क्यों की उनके सभी दोस्त और जानने वाले वहां रहते थे.

दिल्ली में साहिर रहते ज़रूर थे लेकिन वे बम्बई जाना चाहते थे.क्योंकि उन्हें लग रहा था की फ़िल्मी दुनिया उनके के लिए बेसब्र होगी और उनका इंतज़ार कर रही होगी.फिर भी उन्होंने एक साल पता नहीं किस ख़याल से दिल्ली में ही गुजार दिया.




शायर की हैसियत से साहिर ने शायरी की दुनिया में उस समय कदम रखा जब इकबाल और जोश के बाद फिराक़,फैज़ ,मिजाज़ आदि के नग्मों को लोग सुनते थे और गुनगुनाते थे और इन सब शायरों की उस समय तूती बोलती थी.

ऐसे में यदि कोई नया शायर उभरता है तो उस पर अपने समय के प्रतिष्ठित शायरो या कलाकरो असर आता ही है.इसलिए साहिर पर भी उनका प्रभाव पड़ना लाज़मी था.

शुरू-शुरू में तो लोगो को लगता था की वे फैज़ का अनुकरण करते थे.लेकिन उनके व्यक्तिगत अनुभव उन्हें बाकि सब शायरों से अलग करते थे.साहिर भी वही नर्म और नाज़ुक स्वर,वही शब्दो की सुन्दर तराश-खराश और वही नींद में डूबे हुए वातावरण का इस्तेमाल अपनी कविताओं और शायरी में करते थे.

लेकिन उनके अनुभव उनके आड़े आए.उस वर्ग के लिए नरफत और विद्रोह की विचार धारा उनके काम आई.जिसका एक किरदार उनके पिता और दूसरे उनकी प्रेमिका के पिता थे.

सांसारिक दुखो में तपकर निकली हुई उनकी चेतना ने उन्हें रास्ता दिखाया और लोगो ने देखा कि वे फैज़ या मिजाज़ का अनुकरण करने के बजाय अपने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर लिखते थे.जो की उनकी शायरी को एक अलग ही पहचान देता था.

ये सब उनकी व्यक्तिगत परिस्थितिया ही थी जो उनसे ये सब करवा रही थी और उन्हें एक ऐसे मुकाम पर ले आयी थी जहां पहुंचना इतना आसान नहीं था,इन्ही की वजह से उन्हें शायरी की दुनिया में एक अलग मुकाम हासिल है.



उन्होंने लिखा है की…..

मै उन अजदाद का बेटा हु जिन्होंने पैहम
अजनबी कौम के साये की हिमायत की है
ग़दर की साअते-नापाक से लेकर अब तक
हर कड़े वक़्त में सरकार की खिदमत की है.
 


उनकी मानसिक स्तिथि इन शेरों के ज़रिये भी समझी जा सकती है….

न कोई जादा(रास्ता),न मंजिल,न रौशनी,न सुराग
भटक रही है खलाओ में ज़िंदगी मेरी
इन्ही खला में रह जायगा कभी खोकर
मै जानता हु मेरी हम नफ़स(mate) मगर यु ही
 
कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है.

 

की ज़िंदगी तेरी जुल्फों कि नर्म छओ में
गुजरने पाती तो शादाब हो भी सकती थी
ये तीरगी(अँधेरा) जो मेरी ज़ीस्त का (लाइफ) का मुक़द्दर है
तेरी नज़र की शुआओं में खो भी सकती थी.
 

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