कला की उत्पत्ति,प्रकार और परिभाषा
‘कला’ शब्द की उत्पत्ति
‘कला’ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत भाषा की ‘कल’ धातु से हुई है जिसका अर्थ है सुख देने वाला। कला मनुष्य के मन में उत्पन्न भावों को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है तथा आदिकाल से सृष्टि में विद्यमान है। श्री ‘रवीन्द्रनाथ ठाकुर’ के अनुसार, कला में मनुष्य अपनी अभिव्यक्ति करता है। वास्तव में मनुष्य के अन्दर सत्य का रहस्यमय अंश छिपा है।
मनुष्य अपनी अभिव्यक्ति के लिए सुन्दर साधन खोजता है और जब वह इसी सत्य की अभिव्यक्ति को रंगों के माध्यम से करता है तब कला में सत्यम् शिवम् सुन्दरम् की परिभाषा जाग्रत होती है। श्री ‘मैथिलीशरण गुप्त के कथनानुसार, “कला शिवत्व की उपलब्धि के लिए सत्य की सौन्दर्यमयी अभिव्यक्ति है”।
कला के प्रकार
कला दो प्रकार की मानी गई है
1. उपयोगी कला
2. ललित कला
1. उपयोगी कला-वह कला जो हमारी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति करती है, उपयोगी कला कहलाती है।
2. ललित कला-वह कला जिससे आनन्द की प्राप्ति और सौन्दर्य की अनुभूति होती है, ललित कला कहलाती है।
तलित कलाएँ शास्त्रानुसार पाँच भागों में विभक्त की गई है-
1. वास्तु कला
2. मूर्ति कला
3. चित्रकला
4. संगीत कला
5. काव्य कला
भारतीय चित्रकला की विशेषताएँ
भारतीय चित्रकला की कुछ ऐसी महत्त्वपूर्ण विशेषताएं हैं जो भारतीय कलाओं को अन्य देशों की कलाओं से अलग कर देती हैं।
आदर्शवादिता
भारतीय कलाकार सम्पूर्ण चेतन को सृष्टि का अंग मानता है। इसी से उसकी रचनाओं में मानवीय तथा प्राकृतिक जगत का अनूठा रूप दिखाई देता है।
भारतीय कला का जन्म नेत्रों की अपेक्षा मन से होता है। भारतीय कलाकार जैसा दिखाई देता है पैसा चित्रित नहीं करता। बल्कि जैसा उसे होना चाहिए वैसा चित्रण करता है। यह उसको सत्यम् शिवम् सुन्दरम् रूप प्रदान करता है।
कल्पना
भारतीय चित्रकला कल्पना के आधार पर ही विकसित हुई है। भारतीय कला मनीषियों ने अनेक काल्पनिक देवी-देवताओं की कल्पना की और उन्हें सर्वश्रेष्ठ रूप प्रदान किया।
धर्म-प्रधानता
- भारतीय कला सदा से ही धर्म प्रधान रही है। भारत में मन्दिरों-मस्जिदों तथा गिरजाघरों का कलात्मक निर्माण हुआ।
- भारतीय चित्रकला की यह भी विशेषता रही है कि उसमें धर्म के दार्शनिक महत्त्व को प्रधानता मिली जिससे व्यक्ति के चरित्र-निर्माण को सही दिशा प्राप्त हुई।
प्रतीकात्मकता
- भारतीय कलाकारों ने अपनी कला को प्रतीकात्मक रूप में प्रस्तुत किया। भारतीय कलाकारों ने समय-समय पर अनेक सार्थक प्रतीकों का प्रयोग कर अपने चित्रण को प्रभावी बनाया।
- भारत की कलाओं में जटाजूट, मुकुट, सिंहासन, कमत, हंस,हाथी आदि का विशेष स्थान है।
- भारतीय कलाकारों ने समयानुकूल प्रतीकों के प्रयोग से भारतीय कला का गौरव बढ़ाया है।
- भारतीय कलाकारों ने रंगों के प्रयोग में भी प्रतीकों का आलम्बन लेकर अपनी कृतियों को महत्वपूर्ण बनाया है।
आकृतियाँ तथा मुद्राएँ
भारतीय कलाओं में आकृतियों तथा मुद्राओं को आदर्श रूप प्रदान किया गया है। मुद्राओं के द्वारा अनेक भाव सफलता से दर्शाये गए हैं। मुद्राएँ हृदयतल के गम्भीर भावों को व्यक्त करती हुई भारत की कला को गौरव प्रदान करती हैं।
रेखा तथा रंग
- भारतीय चित्रकला रेखा-प्रधान है चित्र की आकृतियों एवं वातावरण को निश्चित सीमा रेखा में अंकित किया गया है
- अभिव्यक्ति को प्रधानता देते हुए कलाकारों ने सपाट रंग योजना को अपनाया और छाया प्रकाश पर बल नहीं दिया।
- यूरोप की कला में छाया प्रकाश की व्यंजना पर अधिक बल दिया गया है।
महत्त्वपूर्ण विन्दु
- कला मानव-मन की अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम है।
- कला शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत भाषा की कल धातु से हुई है जिसका अर्थ सुख देने वाला है।
- चित्रकला का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव जाति का इतिहास चित्र बनाने की प्रेरणा मनुष्य के हृदय से स्वयं जाग्रत होती है।
भारतीय शास्त्रानुसार कता के 61 प्रकार बताए गए हैं।
शास्त्रों के अध्ययन से पता चलता है कि ‘कला’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग ऋग्वेद में हुआ। वह कृति जिसमें सौन्दर्य का बोध हो कला कहलाती है।
आदर्शवादिता, कल्पना, धर्म-प्रधानता, प्रतीकात्मकता, आकृतियाँ, मुझएँ रेखा तथा रंग भारतीय चित्रकला की प्रमुख विशेषताएँ हैं। चित्रकला सभी कलाओं में सर्वश्रेष्ठ है। भारतीय चित्रकला सौन्दर्य की खोज है तथा अन्य देशों की कलाओं से अलग है। भारतीय कला का भण्डार सागर के समान विशाल तथा गहरा है।
भारतीय चित्रकला का इतिहास आदिकाल से लेकर आधुनिक युग तक एक विशाल भण्डार के रूप में हमारे देश की कला में विद्यमान है।
प्राचीन ग्रन्थों तथा महाकाव्यों में भी स्थान-स्थान पर चित्रकला का उल्लेख मिलता है। चित्र लक्षण, ऋग्वेद, महाभारत, रामायण, नाट्य शास्त्र आदि ग्रन्थों में कलाओं के सम्बन्ध में चर्चा की गई है।
देश के महान चित्रकारों ने अपनी कला के द्वारा भारतीय कला को उच्च शिखर पर पहुँचाया तथा कला की पूजा व उपासना की।
कला गुरु ‘पद्म विभूषण’ देवी प्रसाद राय चौधरी के अनुसार “मेरा स्टूडियो ही मेरा कला मन्दिर है। में पूर्णरूप से कला के लिए समर्पित हूँ। में जिन वस्तुओं की रचना करता हूँ उन्हीं की पूजा करता हूँ।”
देश के प्रमुख चित्रकार
रवीन्द्रनाथ टैगोर, गगेन्द्र नाथ ठाकुर, राजा रवि वर्मा, सतीश गुजराल, देवी प्रसाद राय चौधरी, अब्दुर्रहमान चुगताई, नन्द लाल बोस, भवेश सान्याल, शारदा उकील, जैमिनी राय, मकबूल फिदा हुसैन, शोभा सिंह, अमृता शेरगिल, के० वेंकटप्पा, असित कुमार हाल्दर, मनीषी डे, जार्जकीट, प्रमोद कुमार चटर्जी तथा रविशंकर रावल आदि।