सिन्धु घाटी की सभ्यता

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सिंधु घाटी सभ्यता की कला, शिल्प,मोहरें और प्रमुख स्थल | Art, Crafts, Seals and Major Sites of Indus Valley Civilization

सिन्धु घाटी की सभ्यता | Indus Valley Civilization

सिन्धु घाटी की सभ्यता का विस्तार लगभग आठ लाख वर्ग किलोमीटर में था इस विशाल क्षेत्र में ताल तथा काली पक्की मिट्टी के बर्तन बनाने की कला का विशेष विकास हुआ पुरातत्व-वेत्ताओं में इस सभ्यता को ‘मृतक पात्रों’ की सभ्यता के नाम से पुकारा है। मोहनजोदड़ो और हड़प्पा क्षेत्र की खुदाई से कांस्य युग की कला के उदाहरण प्राप्त हुए हैं। ‘मोहनजोदड़ो और हड़प्पा’ सिन्धु नदी की घाटी में स्थित थे और यहाँ पर एक उच्च सभ्यता विकसित हुई, इसी कारण इनको विद्वानों ने ‘सिन्धुघाटी’ की सभ्यता के नाम से पुकारा है।

सिंधु सभ्यता सिन्धु नदी और घघ्घर/हकडा (सरस्वती) नदी के आस-पास विकसित हुई| इसलिए इसे सिन्धु घाटी सभ्यता कहा जाता है हालाँकि इसके नाम को लेकर पुरातात्वेता और इतिहासकारों एक मत नहीं है क्योंकि कुछ को माना है की हड़प्पा इस सभ्यता इसका प्रमुख केंद्र है इसलिए इसे हड़प्पा सभ्यता कहना उचित होगा। और कुच्छ लोगों का मानना है इसका विकास सिन्धु नदी के किनारे हुआ इसलिए इसे सिन्धु सभ्यता कहना उचित होगा। इसे Indus Valley civilization के नाम से भी जाना जाता है।

सिंधु घाटी सभ्यता (2500 ईसापूर्व से 1750 ईसापूर्व तक) विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध के अनुसार यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है। यह हड़प्पा सभ्यता और ‘सिंधु-सरस्वती सभ्यता’ के नाम से भी जानी जाती है। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं।

इतनी विस्तृत सभ्यता होने के बावजूद भी इसकी उत्पत्ति को लेकर आज भी विद्वानों में मतैक्य का अभाव है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि हड़प्पा संस्कृति के जितने भी स्थलों की अब तक खुदाई हुई है वहां सभ्यता के विकास अनुक्रम का चिन्ह स्पष्ट नही मिलता है अर्थात इस सभ्यता के अवशेष जहां कहीं भी मिले हैं अपनी पूर्ण विकसित अवस्था में ही मिले हैं।

सर जॉन मार्शल, गार्डन चाईल्ड, मार्टीमर व्हीलर आदि इतिहासकारों की मान्यता है कि हड़प्पा सभ्यता की उत्पत्ति में विदेशी तत्व का हाथ रहा है। इन इतिहासकारों का मानना है कि हड़प्पा की उत्पत्ति मेसोपोटामिया की शाखा सुमेरिया की सभ्यता की प्रेरणा से हुई है। इन दोनो सभ्यताओं में कुछ समानताएं भी देखने को मिलती है जो इस प्रकार है –

सिंधु घाटी सभ्यता और सुमेरिया की सभ्यता में समानताएं

(१) दोनो ही सभ्यता नगरीय है।

(२) दोनो ही सभ्यताओं के निवासी कांसे और तांबे के साथ साथ पाषाण के लघु उपकरणों का प्रयोग करते थे।

(३) दोनों ही सभ्यताओं के भवन निर्माण में कच्चे और पक्के दोनो ही प्रकार के ईंटों का प्रयोग हुआ है।

(४) दोनो को लिपि का ज्ञान था।

सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल

  • सिन्धु घाटी की कला की सामग्री हमें वस्तुओं के रूप में उपलब्ध है, जो मुख्यतः हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो नामक दो बड़े नगरों के खण्डों में मिलती है। 
  • चान्हूदड़ो, लोथल नामक स्थानों में भी इस कला की सामग्री प्राप्त हुई है। 
  • इन स्थानों में चित्रकला, मूर्तिकता, स्थापत्य कला के जो अवशेष मिले हैं उससे भी इस युग की महान् कला का परिचय मिलता है।
  • दिसंबर 2014 में “भिरडाणा” हड़प्पा सभ्यता का अबतक के खोजा गया सबसे प्राचीन नगर है| परंतु हड़प्पा भारत में खोजा गया पहला पुराना शहर था।
  • हड़प्पा सभ्यता के 1400 केन्द्रों को खोजा जा चूका है जिसमे से 925 केंद्र भारत में है. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में हडप्पा संस्कृति के सबसे अधिक स्थल गुजरात में खोजा गया है।

सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल निम्न है

  1. हड़प्पा (पंजाब पाकिस्तान)
  2. मोहेनजोदड़ो (सिन्ध पाकिस्तान लरकाना जिला)
  3. लोथल (गुजरात
  4. कालीबंगा( राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में)
  5. बनवाली (हरियाणा के फतेहाबाद जनपद में)
  6. आलमगीरपुर( उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में)
  7. सूत कांगे डोर( पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रान्त में)
  8. कोट दीजी( सिन्ध पाकिस्तान)
  9. चन्हूदड़ो ( पाकिस्तान )
  10. सुरकोटदा (गुजरात के कच्छ जिले में)



सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल पाकिस्तान में


हड़प्पा

हड़प्पा भारत में खोजा गया पहला पुराना शहर था. इसकी खुदाई वर्ष 1921 में दयाराम साहनी और माधोस्वरूप वत्स द्वारा करवायी गई| यह पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के मोंटगोमरी जिले में में रावी नदी के तट पर स्थित है.

प्राप्त साक्ष्य 

बर्तन पर बना मछुआरे का चित्र, शंख का बना बैल, पीतल का बना इक्का, ईंटो के वृताकार चबूतरे, मुहरें, कब्र, धोती पहने मूर्ति, गेहूँ, जौ, भूसी, अन्नागार (अनाज भण्डार), कतार से बने श्रमिक आवास, पुजारी की मूर्ति, अनाज कूटने के लिए इस्तेमाल किए जानेवाले वृताकार चबूतरे जहाँ हर चबूतरे में ओखली लगाने के लिए छेद था इस छेद से जले हुए गेहूँ, जौ के दाने तथा भूसी मिली है

मोहनजोदड़ो

मोहनजोदड़ो का अर्थ होता है “मृतकों का टीला” इसकी खोज 1922 में राखालदास बनर्जी के द्वारा की गयी थी, यह पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के ‘लरकाना’ जिले में सिन्धु नदी के किनारे स्थित है.

प्राप्त साक्ष्य  

यहाँ से सूती वस्त्र, वृहत्स्नानागार, पुरोहितो के आवास, सभागार, कांसे की बनी नर्तकी की मूर्ति, हाथी का कपाल, गले हुए तांबे का ढेर, सीप की बनी हुई पटरी, पशुपतिनाथ का साक्ष्य, साधू की मूर्ति, घोड़े के दाँत, सेलाखड़ी से बने बाट, सबसे विकसित अवस्था में कुँए आदि प्राप्त हुए हैं.

सुत्कोंगेड़ोर

इसका खोज वर्ष 1927 में औरेल स्टाइन ने किया था यह बलूचिस्तान में दाश्क नदी के तट पर स्थित है|

प्राप्त साक्ष्य  

मिट्टी की चूड़ी, राख से भरा बर्तन, तांबे की कुल्हाड़ी, मनुष्य की हड्डी

कोटदजी

इसका खोज वर्ष 1935 में ‘धुर्ये’ ने किया था लेकिन इसकी खुदाई 1953 में एफ.ए. खान के नेतृत्व में हुआ| यह पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के खैरपुर जिले में स्थित है|

प्राप्त साक्ष्य 

 चाँदी का सर्वप्रथम प्रयोग का साक्ष्य, बारहसिंगा का नमूना, कांस्य की चपटे फलक वाली कुल्हाड़ी, अंगूठी, छेनी, एकहरी एवं दोहरी चोड़ियाँ

चन्हुदड़ो

इसका खोज 1931 में एन.जी. मजुमदार द्वार किया गया तथा 1943 में इसे ‘मैके’ ने उत्खनन करवाया गया| यह पाकिस्तान के सिंध प्रान्त में स्थित है|

प्राप्त साक्ष्य  

बिल्ली का पीछा करते हुए कुत्ते, मनके बनाने का कारखाना, सौन्दर्य में प्रयुक्त लिपस्टिक, चार पहिये वाला बैलगाड़ी, गुडिया.

यह सिन्धु घाटी सभ्यता का एक मात्र स्थल जहाँ से वक्रकार ईट मिला है, तांबे तथा कांसे के औजार और सांचो के भण्डार मिले है जिससे ज्ञात होता है की यहाँ मनके बनाने, हड्डियों की वस्तुएं बनाने, का काम किया जाता था| यहाँ से मुहर, गुडिया, हड्डिय तथा गुड़ियों के निर्माण के कारखाने मिला है किसी भी दुर्ग का साक्ष्य नहीं मिला है|

हिन्दुकुश पर्वतमाला के पार अफगानिस्तान में

  1. शोर्तुगोयी – यहाँ से नहरों के प्रमाण मिले है
  2. मुन्दिगाक जो महत्वपूर्ण है

सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल भारत में

भारत के विभिन्न राज्यों में सिन्धु घाटी सभ्यता के निम्न शहर है:- गुजरात

लोथल, सुरकोटडा,रंगपुर,रोजी,मालवद,देसूल,धोलावीरा,प्रभातपट्टन,भगतराव

लोथल

इसकी खुदाई वर्ष 1954-55 में रंगनाथ राव के नेतृत्व में किया गया था यह गुजरात के अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के तट पर स्थित है|

प्राप्त साक्ष्य  

पक्की मिट्टी के नाव का नमूना, जहाज बनाने का स्थल, चावल के दाने, फारस की मुहर, हांथी के दांत का स्केल, घोड़े की मूर्ति, चक्की, चलाक लोमड़ी की कहानी के सबुत, सोने के दाने, सेलखडी की चार मुहरें, सींप तथा तांबे की चुडीयाँ, रंगा हुआ मिट्टी का जार, माप तौल के उपकरण, युग्मित समाधी, कब्र में सिर उत्तर की ओर और पैर दक्षिण की ओर था लेकिन एक का कंकाल पूर्व-पक्षिम की मिला है| लोथल सिन्धु घाटी सभ्यता के सबसे प्रमुख बंदरगाहों था.

सुरकोटड़ा

इक खोज वर्ष 1964 में जगपति जोशी ने किया था यह गुजरात के कच्छ में स्थित है| यहाँ से सिन्धु घाटी सभ्यता के विस्तार के प्रमाण मिलता है|

प्राप्त साक्ष्य 

घोड़े की हड्डी एवं एक अनूठे प्रकार के कब्रगाह

रंगपुर

इसका उत्खनन वर्ष 1953-54 में रंगनाथ राव के नेतृत्व में किया गया यह गुजरात के काटियावाड प्रायद्वीप में सुकभादर नदी की तट पर स्थित है|

प्राप्त साक्ष्य 

धान की भूसी का ढेर, मृदभांड, बाँट तथा कच्ची ईटो से बना दुर्ग

धौलाविरा

इसकी खोज 1967 में जगपति जोशी द्वारा किया गया था तथा इसका उत्खनन खुदाई 1990-91 में रविन्द्र सिंह बिष्ट के नेतृत्व में किया गया. यह गुजरात में कच्छ जिले में मानसर और मानहर नदी के बीच स्थित है. यह सिन्धु घाटी सभ्यता पहला ऐसा नगर था जो तीन भागों में बता था दुर्ग भाग, माध्यम भाग, और निचला नगर.

शहर चौकोर दीवारों की एक श्रृंखला से घिरा हुआ था, जिसमें एक “गढ़” था जो “मध्य शहर” और “निचला शहर” से 15 मीटर ऊपर उठता है। उत्तरी गेट के एक कमरे के फर्श पर दस विशाल सिंधु चिन्हों वाला एक साइनबोर्ड संभवतः मूल रूप से प्रवेश द्वार के ऊपर प्रदर्शित किया गया था। यद्यपि साइनबोर्ड पर लिखी गई सिंधु लिपि अभी भी समझ में नहीं आई है, यह संभावना है कि शिलालेख शहर के नाम या किसी देवता या शासक के नाम का प्रतिनिधित्व करता है।

धौलाविरा का ऐतिहासिक साइन बोर्ड

सुरक्षित किले के एक गेट के ऊपर उस जमाने का एक साइन बोर्ड मिला है, जिस पर दस बड़े अक्षरों में कुछ लिखा हुआ है, जो पांच हजार साल बाद भी सुरक्षित है। शहर का नाम हो या प्रांतीय अधिकारियों का नाम, यह आज भी एक रहस्य है। ऐसा लगता है कि शहरवासियों का स्वागत किया जा रहा है? सिंधु घाटी की लिपि आज भी एक अनसुलझी पहेली है।

धौलाविरा  ऐतिहासिक साइन बोर्ड और उस पर लिखे गये दस अक्षर
धौलाविरा  ऐतिहासिक साइन बोर्ड और उस पर लिखे गये दस अक्षर

साक्ष्य 

दुर्ग भाग और माध्यम भाग के बीच भव्य इमारतें के अवशेष, चारो ओर दर्शकों को बैठने के लिए बनायीं गई सीढ़ीनुमा संरचना तथा सूचनापट, विभिन प्रकार के जलाशय, सबसे उन्नत जल-प्रवंधन प्रणाली धौलाविरा के दुर्ग में कुएँ का साक्ष्य मिला है जिसके अन्दर जाने के लिए निचे की सीढ़ी लगा हुआ था जिसके जरिये निचे जाया जाता था. उस कुँए में एक खिड़की भी था. जिसमे दीपक जलाने जाने का सुबूत मिलता है| इस कुँए में सरस्वती नदी का पानी आता था, शायद इसी कुँए के जरिये सरस्वती नहीं की पूजा करते थे. जैसे की मिस्र की सभ्यता में नील नदी की पूजा किया जाता था.

धोलावीरा की कंप्यूटर से तैयार की गयी इमेजेज

चौकोर दीवारों से घिरे "दुर्ग", "लोअर टाउन" और "मिडिल टाउन" के साथ पूरे शहर का एक दृश्य
चौकोर दीवारों से घिरे “दुर्ग”, “लोअर टाउन” और “मिडिल टाउन” के साथ पूरे शहर का एक दृश्य
"दुर्ग" (बाएं), और "निचला शहर" और "मध्य शहर" (दाएं)
“दुर्ग” (बाएं), और “निचला शहर” और “मध्य शहर” (दाएं)

"दुर्ग" का क्लोज-अप
“दुर्ग” का क्लोज-अप

दुर्ग का उत्तरी प्रवेश द्वार
दुर्ग का उत्तरी प्रवेश द्वार

धोलावीरा के उत्तरीय महाद्वार के ऊपर लिखे गये दस अक्षर
धोलावीरा के उत्तरीय महाद्वार के ऊपर लिखे गये दस अक्षर

हरियाणा

राखीगढ़ी,भिरड़ाणा,बनावली,कुणाल,मीताथल

राखीगढ़ी

इसका उत्खनन वर्ष 1997 में अमरेन्द्र नाथ के नेतृत्व में किया गया यह हरियाणा के हिसार जिले में सरस्वती और दुषद्वती नदी के तट पर स्थित है| इसे सिन्धु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा नगर होने का दाबा किया जाता है|

प्राप्त साक्ष्य 

अन्नागार, स्तम्भयुक्त मण्डप, अग्निवेदिकाएं

बनावली

इसकी खुदाई वर्ष 1973-74 में आर.एस. विष्ट के नेतृत्व में कराया गया यह हरियाणा के हिसार जिले में रंगोई नदी के तट पर स्थित है|

प्राप्त साक्ष्य 

ताम्बे का कुल्हाड़ी, हल की आकृति का खिलौना, पत्थर और ईट के बने मकान, उन्नत किस्म की जौ, सड़कों पर बैलगाड़ी के निसान, लाजावर्द, कार्नेनियन के मनके, गोलियां, बाट (बटखरे), मिट्टी के बर्तन.

पंजाब

रोपड़ (पंजाब),बाड़ा

इसका खोज 1950 में बी.बी. लाल ने किया और उत्खनन 1953 में यज्ञदत शर्मा के नेतृत्व में किया गया यह पंजाब में रोपड़ जिले के सतलज नदी के तट पर स्थित है|

प्राप्त साक्ष्य 

तांबे की कुल्हाड़ी, आदमी और कुत्ते की एक कब्रगाह, मिट्टी के बर्तन

संघोंल (जिला फतेहगढ़, पंजाब)

महाराष्ट्र

कुणाल,मीताथल,महाराष्ट्राबाद,सांगली,दैमाबाद

दैमाबाद

यह महारास्ट्र के अहमद नगर जिले में स्थित है.

प्राप्त साक्ष्य 

यहाँ से ताम्बे के रथ मिला है

कुणाल

यह हरियाणा में स्थित है 

प्राप्त साक्ष्य 

यहाँ से चाँदी के दो मुकुट प्राप्त हुआ है|

राजस्थान

कालीबंगा

यह सिन्धी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है “काली रंग की चूड़िया” प्राचीन समय में यह चूड़ियों के लिए प्रसिद्ध था. इसकी खुदाई 1953 में बी.बी. लाल और बी.के. थापर द्वार करवाई गई| यह राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में घघ्घर नदी के तट पर स्थित है.

प्राप्त साक्ष्य 

ताम्बे और मिट्टी की बनी मूर्तियाँ, पशु, पक्षी व मानव कृतियाँ, तोलने वाले बाट, वर्तन, आभूषण, कच्ची ईट और अलंकृत ईटे, बेलानाकार मुहरे, खिलौने, आयताकार वर्तुलाकार व अंडाकार अग्निवेदियाँ, बारहसिंघे, लकड़ी के बने पाइप. प्राक्-हड़प्पा सभ्यता के कुंट (हलरेखा) मिला जिससे अनुमान होता है की राजस्थान में हल जोते जाते थे.

जम्मू कश्मीर

माण्डा

यह जम्मू-कश्मीर के अखनूर जिले में चिनाव नदी के तट पर स्थित है|

उत्तर प्रदेश 

आलमगीरपुर,(मेरठ)

इसका खोज 1958 में यज्ञदत शर्मा ने किया यह उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में हिंडन नदी के तट पर स्थित है|

प्राप्त साक्ष्य  

रोटी बेलने की चौकी, कटोरे के टुकड़े, मनके एवं पिंड, मिट्टी के बर्तन

सिन्धु घाटी की खोज

इस सभ्यता की खोज का श्रेय सर जॉन मार्शल तथा डॉ० अस्नेन्ट मैक को जाता है। उन्होंने सन् 1924 ई० में इस सभ्यता का संसार को ज्ञान कराया। पुरातत्व विभाग ने सिन्धु घाटी क्षेत्र में 1922 ई० मे स्व०राखालदास बनर्जी की अध्यक्षता में उत्खनन कार्य आरम्भ किया.

लरकाना जिले में मोहनजोदड़ो तथा लाहौर और मुल्तान के बीच हहड़प्पा की खुदाई में एक विकसित सभ्यता के अवशेष प्राप्त हुए।

महत्त्व

सिन्धु घाटी की कला विकसित सभ्यता है और यहाँ के जीवन काल तथा धार्मिक विश्वास में गहरी एकता है। सिन्धु घाटी की सभ्यता के उद्घाटन से प्राचीन इतिहास और कला के क्षेत्र में चमत्कारी परिवर्तन हुए इस कारण भारतीय सभ्यता की प्राचीनता लगभग दो हजार वर्षों तक पहुंची है।

बसन्त लाल जैन के शब्दों में, “नदियों ने मनुष्य को जल और जीवन ही नहीं दिया अपितु अपनी गोद में बैठाकर मानव को विकास की सुविधाएँ भी दीं। यही कारण था कि नदियों की घाटी में विश्व की अनेक महत्वपूर्ण सभ्यताओं का जन्म हुआ।

सिंधु घाटी सभ्यता में मुख्य व्यवसाय

सिंधू घाटी की सभ्यता के शहरों मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के निवासी पशुपालन और खेती करते थे और कई तरह के अनाज, फल, दालें, मसाले वगैरह उगाते थे। यहाँ के लोग व्यापार वस्तु विनिमय के द्वारा करते थे यानी की एक सामान के बदले दुसरे वस्तु लेते थे.

लोथल, सुतकोतदा, अल्लाहदिनो, कुतासी, बालाकोट आदि सिन्धु सभ्यता का बंदरगाह था.बहुत सारे हड़प्पाई सील मेसोपोटामिया से प्राप्त हुआ है जिससे पता चलता है की हड़प्पा और मेसोपोटामिया के बीच गहरा व्यापार संवंध होगा.

माप तौल से परचित थे जोकि संभवतः 16 के अनुपात में था. जैसे की 16, 32, 64, 48, 160, 320, 640, 1280 इत्यादि होता था. मेसोपोटामिया के अभिलेखों में मेलूहा शब्द का संवंध सिन्धु सभ्यता से ही है.

आयातित वस्तुएँ             प्रदेश

तांबा                                     बलूचिस्तान, ओमान, अफगानिस्तान, ईरान

सोना                                     कर्नाटक, अफगानिस्तान, ईरान

चाँदी और टिन                     अगानिस्तान, ईरान

सीसा                             ईरान

गोमेद                             सौरराष्ट्र

लाजवार्दा                             मेसोपोटामिया

हड़प्पा सभ्यता के लोगों का मुख्य आहार भोजन

मोहनजोदड़ो की खुदाई में मिले अवशेषों से वहां के लोगों की खानपान की आदतों का भी पता चला है। इतिहासकारों और आर्कियोलॉजिस्ट्स की माने तो मोहनजोदड़ो के लोगों की डाइट काफी हेल्दी थी। ज्यादातर लोग फ्रूट और वेजिटेबल्स खाते थे। उनके दांतों और हड्डियों के अवशेषों से पता चलता है कि पुरुषों की खुराक महिलाओं से ज्यादा अच्छी थी।

मोहन जोदड़ो के लोग खाने में मुख्य रुप से तेल और अलसी का सेवन करते थे। गाय,भैंस के दूध का इस्तेमाल कई तरह कि डिशेज बनाने में करते थे। ये लोग जानवरों को चावल खिलाते थे और स्वयं जौ,बाजरा, का सेवन करते थे, दालें, हरि सब्जियां और फल भी रोज के खाने में शामिल थे। ये लोग मुर्गी और बत्तख का पालन करते थे।

प्राप्त सामग्री

1. पाषाण मूर्ति शिल्प

सिन्धु में पाषाण युग का भी विकास हुआ। इसमें 11 मूर्तियाँ प्राप्त हुई है। इसके अतिरिक्त हड़प्पा के टीले की खुदाई में दो छोटी मूर्तियों मिलती हैं। जिनमें शरीर का केवल बीच का भाग सुरक्षित है। इनमें सबसे विशेष एक मूर्ति है जिसमें काया भाग के साथ मस्तिष्क भी सुरक्षित है।

मूर्तियों के नेत्र लम्बे कम चोड़े तथा अच्छे बने हुए हैं जिनका ललाट कुछ छोटा तथा पीछे की ओर ढलका हुआ है। अच्छी आँखों से प्रतीत होता है कि वह किसी योगी की मूर्ति रही है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक नृत्य की मूर्ति सुन्दर तथा भाव युक्त है। उसके पैरों का भाग टूटा है। सिर एक ओर झुका हुआ है। इसके अतिरिक्त ग्यारह ताम्र पशुओं की आकृतियों जिनमें भैंसे और गैंडे की मूर्तियाँ विशेष महत्वपूर्ण है।

2. काचली मिट्टी की वस्तुएँ

सिन्धु सभ्यता में सोने, चांदी की बहुतायत थी. गोल एवं चोकोर पदक, सोने के बाजूबन्द, नाक की कीलें, कर्ण फूल, हार, लताएँ, माथे की गोल बिन्दी, कंगन आदि के मिलने से ज्ञात होता है कि उस समय के मानव सौन्दर्य एवं प्रसाधन कला के प्रेमी थे। 

साधारणतः हड्डी, तांबे, पक्की मिट्टी के आभूषण है। कुछ स्थानों पर रंगी हुई मिट्टी की मूर्तियों भी प्राप्त हुई हैं। जिससे उस समय की कला के प्रति रुचि का पता चलता है। इस सभ्यता के अधिकतर पक्की मिट्टी के बर्तन प्राप्त हुए है इसको पकाई मिट्टी के बर्तनों की सभ्यता’ भी कहा जाता है। 

3. मुदाएँ एवं मोहरें

सिन्धु घाटी में उपलब्ध लगभग एक हजार चौदह सौ से अधिक घिसे पत्थर की बनी हुई मोहरे कला की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण है।  

एक मुहर जिस पर त्रिशूल के साथ एक मानवाकृति पशुओं आदि सहित है। जिस पर बना चित्र शिव का प्रतीत होता है। मोहनजोदड़ो से प्राप्त एक मुहर पर पशुपति को पशुओं के साथ बनाया गया है। इस मुहर में सींगदार मुकुट पहने त्रिनेत्रधारी शिव एक योगी के समान सिंहासन पर बैठे हैं। उनके चारों ओर कुछ पशु है।

4. भवन निर्माण

नगर तथा भवन निर्माण में यह सभ्यता आज की तरह ही थी। जिसमें पक्की सड़कें, ऊँचे-चौड़े कमरे, पक्की नालियाँ, संयुक्त स्नानागार, इंटों के पक्के फर्श, भवनों में पानी की निकासी के लिए प्रबन्ध था जो उच्च कोटि का माना जाता है।

5. बर्तन

यहाँ की चित्रकारी के नमूने मिट्टी के बर्तन भाण्डों पर बने असंख्य अलंकरणों के रूप में मिलते हैं। सिन्धु घाटी के कुम्हार मिट्टी के बर्तन चाक पर बनाते थे। कुछ सादे बर्तन भी हैं तथा कुछ पर काली रेखाओं से बने चित्र हैं। बर्तनों पर चित्र बनाने के दो उद्देश्य थे, पहला सौन्दर्य तथा दूसरा शोभा का उत्पादन।

6. शव पात्र

शव पात्रों का वर्ग अलग है। बड़े पात्रों को दो खण्डों में विभाजित किया जाता है। उन पर सामान्यतः मोर का चित्र बना होता था। जिसके सिर पर बड़े-बड़े सींग हैं। शव पात्रों के ढक्कन पर हिरन प्रायः अत्यन्त प्रभावशाली है। उन पर हिरन, मोर, वृक्ष, पक्षी, मछली, पंजा आदि के चित्र नीचे अंकित हैं।

सिन्धु घाटी की विशेषताएँ

डॉ० वासुदेव शरण अग्रवाल के शब्दों में, “अपने यशकाल में सिन्धु संस्कृति एक दिव्य महान् सुगन्धित पुष्प के समान थी। जिसका दिव्य सौरभ चारों ओर भर गया था और आज भी उसकी चमक सुरुचिपूर्ण कला के समान हमारे सामने आती है।”

  • नगर व्यवस्था को देखने से पता चलता है कि यह व्यापारिक केन्द्र रहा होगा।
  • इस समय के स्त्री व पुरुष दोनों को ही गहनों का अत्यधिक शौक था। 
  • चित्रों में मोर, पक्षी, बैल, देवी देवता मानव-आकृतियों फूल-पत्ती सभी चित्रित की गई हैं। .
  • खेती बाड़ी में वे प्रवीण तथा समृद्धशाली थे। 
  • इस समय के स्त्री व पुरुष लम्बे बाल धारण करते थे जिन्हें वह फूलों तथा गहनों से सजाते थे तथा शृंगार से सम्बन्धित सामान भी देखा जा सकता है। 
  • खेल-खिलौने, बर्तन, जेवर, गहने भी प्रयोग करते थे।
  • इस प्रकार सिन्धु घाटी की सभ्यता कलाप्रियता की धोतक मानी जा सकती है।

महत्त्वपूर्ण विन्दु

  1. सिन्धुघाटी की सभ्यता एक हजार वर्षों तक फैली रही तथा इसका समयकाल 4000 ई० पूर्व तक माना गया है।
  2. कनिंघम ने 1878 ई० में हड़प्पा टीले का पता लगाया था और उस स्थान से प्राप्त कुछ मुहरों के चित्र भी प्रकाशित करवाए।
  3. चीन से लेकर मध्य एशिया तक और भारतवर्ष में ईसा से चार हजार वर्ष पूर्व से लेकर ईसा से तीन हजार वर्ष पूर्व के मध्य एक सभ्यता का जन्म हुआ जिसे सिन्धु घाटी की सभ्यता का गया।
  4. मोहनजोदड़ी में समाधियाँ, तालाब, स्नानागार तथा दो मंजिला मकानों के अवशेष प्राप्त हुए। 
  5. लोथल सभ्यता मोहनजोदड़ों के अन्तर्गत ही आती है। यहाँ पर हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो जैसे ही मिट्टी के बर्तन, खिलौने, मनके, ताँबे की सामग्री प्राप्त हुई है।

सिन्धु सभ्यता के पतन का कारण

सिन्धु सभ्यता लगभग 1000 वर्षों तक रहा हालाँकि इसका पतन कैसे हुआ इसपर विद्वानों का एक मत नहीं है. इसे लेकर विद्वानों के द्वारा अलग-अलग तर्क दिए जातें है.
हड़प्पा सभ्यता के पतन होने के निम्न कारण हो सकता है
  • नदियों का जलमार्ग परिवर्तित हो जाने के कारण
  • नदी में बाढ़ आ जाने के कारण
  • महामारी के कारण
  • जलवायु परिवर्तन के कारण
  • भीषण अग्निकाण्ड के कारण
  • आर्यों का आक्रमण के कारण
  • भूकम्प के कारण
इस सभ्यता का विकास नदी के किनारे होने के कारण अधिकतर विद्वानों का मानन है की इस सभ्यता का पतन बाढ़ के कारण हुआ| लेकिन पतन कैसे हुआ अभी तक इसका कोई ठोस कारण नहीं मिला है!

सिंधु घाटी सभ्यता के बारे में अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न | FAQ about Indus valley civilization

सिंधु घाटी सभ्यता कहाँ स्थित है?

यह सभ्यता लगभग 2500 ईस्वी पूर्व दक्षिण एशिया के पश्चिमी भाग मैं फैली हुई थी,जो कि वर्तमान में पाकिस्तान तथा पश्चिमी भारत के नाम से जाना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता मिस्र,मेसोपोटामिया,भारत और चीन की चार सबसे बड़ी प्राचीन नगरीय सभ्यताओं से भी अधिक उन्नत थी।

सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माता कौन थे?

डा० सुनीत कुमार, फादर हेरास तथा हाल के अनुसार इस सभ्यता के निर्माता द्रविड़ थे। गार्डन चाइल्ड ने सुमेरियनों को सिन्धु सभ्यता का निर्माता माना है।

सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे बड़ा स्थल कौन सा है?

राखीगढ़ी हरियाणा के हिसार जिले में सरस्वती तथा दृषद्वती नदियों के शुष्क क्षेत्र में स्थित एक महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थान है। राखीगढ़ी सिन्धु घाटी सभ्यता का भारतीय क्षेत्रों में सबसे विशालतम ऐतिहासिक नगर है। हालांकि कुछ स्रोतों में मोहनजोदड़ो को सबसे बड़ा दिखाया गया है। राखीगढ़ी की खोज 1969 में हो चुकी थी. लेकिन व्यापक खुदाई 2000 के आसपास हुई.

सिंधु घाटी सभ्यता में कितने नगर थे?

सिंधु घाटी सभ्यता के 1400 केन्द्रों को खोजा जा चूका है जिसमे से 925 केंद्र भारत में है. मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा, राखीगढ़ी और हड़प्पा इसके प्रमुख केन्द्र थे।  दिसम्बर 2014 में भिरड़ाणा को सिन्धु घाटी सभ्यता का अब तक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया है।

सिंधु सभ्यता की खोज कब और किसने की?

इस सभ्यता की खोज का श्रेय सर जॉन मार्शल तथा डॉ० अस्नेन्ट मैक को जाता है। उन्होंने सन् 1924 ई० में इस सभ्यता का संसार को ज्ञान कराया। पुरातत्व विभाग ने सिन्धु घाटी क्षेत्र में 1922 ई० मे स्व०राखालदास बनर्जी की अध्यक्षता में उत्खनन कार्य आरम्भ किया.

मोहनजोदड़ो का दूसरा नाम क्या है?

मोहनजोदड़ो सिंधी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है मुर्दों का टीला। इसे मुअन जो दाड़ो भी कहा जाता है। हालांकि शहर का असली नाम अब भी किसी को नहीं पता लेकिन मोहनजोदाड़ो की पुरानी सील को देखकर पुरातत्वविदों ने एक द्रविड़ियन नाम पता लगाया जो है कुकूतर्मा। यह सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे पुराना और नियोजित शहर था।

हड़प्पा सभ्यता का कुल क्षेत्रफल कितना है?

हड़प्पा सभ्यता विश्व की सबसे विकसित सभ्यता थी। सौभाग्यवश यह सभ्यता भारतवर्ष में उत्पन्न हुई सभ्यता थी। यह सभ्यता जितनी विकसित थी उतनी ही विस्तृत भी थी। इस सभ्यता का क्षेत्रफल 1299600 वर्ग किमी था।

सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि कौन सी है?

सिंधु घाटी की सभ्यता से सम्बन्धित छोटे-छोटे संकेतों के समूह को सिन्धु लिपि (Indus script) कहते हैं। इसे सिन्धु-सरस्वती लिपि और हड़प्पा लिपि भी कहते हैं। यह लिपि सिन्धु सभ्यता के समय (२६वीं शताब्दी ईसापूर्व से २०वीं शताब्दी ईसापूर्व तक) परिपक्व रूप धारण कर चुकी थी।

सिंधु घाटी सभ्यता के अतं के बारे में लोगों का क्या कहना है?

विश्वास किया जाता है कि यह सभ्यता गंगा की घाटी तक फैली थी। इस के अंत के बारे में विद्वानों में कई मतभेद है। कुछ विद्वानों का मानना है कि इसका अंत अचानक किसी दुर्घटना के कारण हुआ था या सिंधु की भयंकर बाढ़ो से नष्ट हो गया या मौसम के परिवर्तन से ज़मीन धीरे-धीरे सूखती गई और चारों ओर रेगिस्तान छा गया।

सिंधु घाटी के लोग किसकी पूजा करते थे?

सिन्धु सभ्यता में मातृशक्ति की पूजा सर्वप्रधान थी। यहाँ से सबसे अधिक नारी की मृण्मूर्तियां प्राप्त हुई हैं। हड़प्पा से प्राप्त एक मुहर में स्त्री के गर्भ से एक पौधा निकलता हुआ दिखाया गया है। यह सम्भवतः पृथ्वी देवी की प्रतिमा है।

सिंधु सभ्यता के लोगों का दर्पण किसका बना हुआ था?

सिंधु घाटी सभ्यता में लोगों का दर्पण तांबे का बना हुआ होता था। सिंधु घाटी सभ्यता के खनन में मिले अवशेषों से जानकारी प्राप्त हुई थी कि उस समय लोग ताँबे के बने दर्पण का उपयोग करते थे।

भारत की पहली और प्राचीन सभ्यता कौन सी थी?

सिंधु घाटी सभ्यता को पहली शहरी सभ्यता माना जाता है. इसके बाद गंगा नदी घाटी सभ्यता को दूसरी शहरी सभ्यता माना जाता है. यह माना जाता था कि उस दौरान कोई दूसरी शहरी सभ्यता नहीं थी.

सिंधु सभ्यता का सबसे छोटा स्थल कौन सा है?

सिंधु घाटी सभ्यता का सबसे छोटा स्थल अल्लादीनोंह हैं।

भारत का सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल कौन सा है?

हड़प्पा सभ्यता (Harappan Civilisation) के सबसे बड़े स्थलों में से एक राखीगढ़ी भारत में 500 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है।

सिंधु घाटी सभ्यता का नवीनतम क्या स्थल है?

सिंधु घाटी सभ्यता का नवीनतम स्थल धोलाबीरा है।

सिंधु घाटी सभ्यता कितने वर्ष पुरानी है?

सिंधु घाटी सभ्यता (2500 ईसापूर्व से 1750 ईसापूर्व तक) विश्व की प्राचीन नदी घाटी सभ्यताओं में से एक प्रमुख सभ्यता है। आईआईटी खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के वैज्ञानिकों ने सिंधु घाटी सभ्यता को लेकर ऐसे तथ्य सामने रखे हैं, जिनसे पता चलता है कि यह सभ्यता 5,500 नहीं बल्कि 8,000 साल पुरानी है. इस हिसाब से सिंधु घाटी मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता से भी पुरानी सभ्यता है. सम्मानित पत्रिका नेचर में प्रकाशित शोध से भी इस बात का पता चलता है कि यह सभ्यता कम से कम 8000 वर्ष पुरानी है।

मोहनजोदड़ो का वास्तविक नाम क्या था?

इसका असली नाम मोहनजो दाड़ो नहीं था, पर क्या था, यह कोई नहीं जानता? वास्तव में मोहनजो दाड़ो सिंधी भाषा का शब्द है, जिसका मतलब है ‘मुर्दों का टीला’।

मोहनजोदड़ो का क्या अर्थ है?

मोहनजोदड़ो का मतलब होता है ‘मुर्दों का टीला. ‘ मोहनजोदड़ो योजनाबद्ध तरीके से बनाया गया एक शानदार शहर था जिसमें अविश्वसनीय तरीके से सारी सुख-सुविधाएं मौजूद थीं. यहां बने घरों में पक्की ईंटों से बने स्नानघर और शौचालय थे.

हड़प्पा सभ्यता की लिपि कौन सी है?

इसकी लिपि पिक्टोग्राफ अर्थात् चित्रात्मक थी जो दाईं ओर से बाईं ओर लिखी जाती थी।

हड़प्पा सभ्यता में पाई गई ईंटों का अनुपात क्या है?

सिंधु घाटी की ईंटें एक निश्चित अनुपात में बनाई जाती थीं। अधिकांशतः ईंटें आयताकार आकर की होती थीं। ईंट की लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई का अनुपात 4 : 2 : 1 था। नगर को दो भागों में विभाजित किया गया था, एक भाग छोटा लेकिन ऊंचाई पर बना होता था तो नगर का दूसरा भाग कहीं अधिक बड़ा परन्तु नीचे बनाया गया था।

हड्डापा और मोहनजोदड़ो के बीच कितनी दूरी है?

हड़प्पा और मोहनजोदादो के बीच की दूरी लगभग 688 किमी है। ये सिंधु नदी के पश्चिमी तट पर स्थित थे जो वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत में आती है

हड़प्पा सभ्यता का सबसे बड़ा नगर कौन था?

हरियाणा में राखीगढ़ी भारतीय उपमहाद्वीप में सबसे बड़ा हड़प्पा स्थल है।
राखीगढ़ी में, इसकी शुरुआत और 6000 ईसा पूर्व (पूर्व हड़प्पा चरण) से इसके क्रमिक विकास का अध्ययन करने के लिए खुदाई की गई है। 

मोहनजोदड़ो का सबसे बड़ा स्थल कौन सा है?

मोहनजोदड़ो की सबसे बड़ी इमारत अन्नागार या अन्नकोठार या धान्यागार है। यह 45.71 मी. लम्बा और 15.23 मी. चौडा है।

सिंधु घाटी सभ्यता की जुड़वा राजधानी कौन थी?

स्टुवर्ट पिग्गट ने हड़प्पा व् मोहनजोदड़ो को सिंधु घाटी सभ्यता की जुड़वा राजधानी कहा।

सिंधु घाटी सभ्यता में मुख्य व्यवसाय क्या था?

सिंधु घाटी के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। गेहूं, जौ, मटर, और केला जैसी फसलें उगाई गईं।इसके शहरों मोहनजोदड़ो और हड़प्पा के निवासी पशुपालन और खेती करते थे

हड़प्पा सभ्यता के लोगों का मुख्य आहार क्या था?

मोहन जोदड़ो के लोग खाने में मुख्य रुप से तेल और अलसी का सेवन करते थे। गाय,भैंस के दूध का इस्तेमाल कई तरह कि डिशेज बनाने में करते थे। ये लोग जानवरों को चावल खिलाते थे और स्वयं जौ,बाजरा, का सेवन करते थे।दालें, हरि सब्जियां और फल भी थी रोज की खाने में शामिल। ये लोग मुर्गी और बत्तख का पालन करते थे।

सिंधु घाटी सभ्यता की प्रमुख विशेषता क्या है?

सिंधु सभ्यता का आर्थिक जीवन अत्यन्त विकसित अवस्था में था। आर्थिक जीवन के प्रमुख आधार कृषि, पशुपालन, शिल्प और व्यापार थे। सिन्धु तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा प्रतिवर्ष लायी गयी उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी कृषि कार्य हेतु महत्वपूर्ण मानी जाती थी। इस उपजाऊ मैदान में मुख्य रूप से गेहूं तथा जौ की खेती की जाती थी।

सैंधव सभ्यता की देन क्या है?

सैंधव सभ्यता में प्राप्त विभिन्न देवी- देवताओं, पशु-पक्षियों आदि की मूर्तियों से स्पष्ट है कि वहाँ के लोग मूर्ति पूजा में विश्वास करते थे तथा अपने देवी-देवताओं की मूर्तियाँ बनाते थे। मार्शल का विचार है कि वे लकड़ी के मन्दिर बनाते थे।

हड़प्पा सभ्यता की सबसे मुख्य विशेषता क्या थी? 

हड़प्पा सभ्यता की सबसे प्रमुख विशेषता उन्नत जल निकास व्यवस्था थी | हर घर से निकलने वाली छोटी नालियां मुख्य सड़क के साथ –साथ बड़ी नालियों से जुड़ी थी और साफ –सफाई का ध्यान रखते हुए इन्हें ढका गया था और तो और थोड़ी –थोड़ी दूरी पर मलकुंड (सिसपिट) बनाएं गए थे|

हड़प्पा सभ्यता के लोग कौन सी भाषा में वार्तालाप करते थे?

हडप्पा सभ्यता के लोग ब्राहुई भाषा , जो आज भी अफगानिस्तान के आसपास के पाकिस्तान के एक सीमित स्थान मे बोली जाती है,बोलते थे जिसमे संस्कृत व द्रविड़ भाषिक मिश्रण होता था।

सिंधु घाटी सभ्यता का अंत कैसे हुआ?

अधिकांश विद्वानो के मतानुसार इस सभ्यता का अंत बाढ़ के प्रकोप से हुआ। चूँकि सिंधु घाटी सभ्यता नदियों के किनारे-किनारे विकसित हूई, इसलिए बाढ़ आना स्वाभाविक था, अतः यह तर्क सर्वमान्य हैं। परन्तु कुछ विद्वान मानते है कि केवल बाढ़ के कारण इतनी विशाल सभ्यता समाप्त नहीं हो सकती।

सिंधु वासियों के प्रमुख देवता कौन थे?

मातृदेवी, पशुपतिनाथ, सूर्य,जल, पृथ्वी देवी ,लिंग, वृक्ष और प्रकृति देवी की पूजा करते थे।

सभ्यता के लोग किसकी उपासना करते थे?

सिंधु सभ्यता के लोग धरती को उर्वरता की देवी मानते थे और पूजा करते थे. पेड़ की पूजा और शिव पूजा के सबूत भी सिंधु सभ्यता से ही मिलते हैं.हड़प्पा सभ्यता के लोगों द्वारा मातृदेवी, पशुपतिनाथ, स्वास्तिक, पीपल वृक्ष की पूजा की जाती थी।

चन्हूदड़ों कहाँ है?

चन्हुदड़ो सिंधु घाटी सभ्यता के नगरीय झुकर चरण से सम्बंधित एक पुरातत्व स्थल है। यह क्षेत्र पाकिस्तान के सिंध प्रान्त के मोहेंजोदड़ो से 130 किलोमीटर (81 मील) दक्षिण में स्थित है। यहाँ पर 4000 से 1700 से ईशा पूर्व में बसा हुआ माना जाता है और इस स्थान को इंद्रगोप मनकों के निर्माण स्थल के रूप में जाना जाता है।

मोहनजोदड़ो की आबादी कितनी थी?

ईंट की बनी हुई विशाल संरचना और साफ तौर पर सड़कों को पहचाना जा सकता था. माना जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के इस शहर में 35,000 लोग रहा करते थे

हड़प्पा लिपि की क्या विशेषता थी?

इस लिपि को सिंधु लिपि, सरस्वती लिपि के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह लिपि दाईं से बाईं ओर लिखी जाती थी क्योंकि कुछ मुहरों पर दाईं ओर चौङा अंतराल है और बाईं ओर यह संकुचित है जिससे लगता है कि उत्कीर्णक ने दाईं ओर से लिखना आरंभ किया और बाद में स्थान कम पङ गया ।

सिंधु सभ्यता की विशिष्ट पहचान क्या है?

सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे विशिष्ट पहचान पुरावस्तु है – मुहर – यह सेलखड़ी नामक पत्थर से बनाई जाती थी। 3. हड़प्पा सभ्यता की जानकारी के प्रमुख स्रोत – मृदभाण्ड, भौतिक अवशेष, आभूषण, औजार, मोहरें, इमारतें, खुदाई में मिले सिक्के इत्यादि।

हड़प्पा सभ्यता में अनाज पीसने का साधन क्या था?

 मोहनजोदड़ो की खुदाई में उस ज़माने की रसोइयों में सिलबट्टे जैसी अवतल चक्कियां मिलीं। ये चक्कियां कठोर, कंकरीले और बलुआ पत्थर से बनाई जाती थीं। इनके ज़्यादा इस्तेमाल के संकेत यह बताते हैं कि अनाज कूटने या पीसने के लिए ये एकमात्र साधन थीं।

हड़प्पाई अभिलेखों में कुल कितने चिन्ह हैं?

हड़प्पाई लिपि में लगभग 64 मूल चिन्ह हैं जो सेलखड़ी की आयताकार मुहरों, तांबे की गुटिकाओं आदि पर मिलते हैं।

हड़प्पा से प्राप्त नर्तकी की मूर्ति की ऊंचाई कितनी है?

इस मूर्ति की उंचाई 10.5सेन्टीमीटर है।

मनके बनाने के लिए कौन सी वस्तु प्रसिद्ध है?

मनकों के निर्माण में प्रयुक्त पदार्थों – कार्नीलियन (सुन्दर लाल रंग का) जैस्पर, स्फटिक, क्वार्ट्स तथा सेलखड़ी जैसे पत्थर, तांबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुएँ तथा शंख फ़यॉन्स और पकी मिट्टी – सभी का प्रयोग मनके बनाने में होता था।

इतिहास में मनके का क्या अर्थ है?

‘गुरिया’ शब्द का मूल संस्कृत का ‘गुटिका’ शब्द है और ‘मनका’ का मूल संस्कृत ही का ‘मणिका’ शब्द है। मनुष्य कब से गुरिया बनाता रहा है, यह कहना कठिन है। जीवश्मों से निर्मित्त पुरापाषाण काल के कुछ ऐसे दाने प्राप्त हुए हैं जिनके संबंध में विश्वास किया जाता है कि वे उस काल में मनुष्यों द्वारा गुरियों की भाँति प्रयुक्त होते थे।

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग किससे अपरिचित थे?

लोहे से

यह लोग गाय, भैंस, भेड़, बकरी, बैल, कुत्ते, बिल्ली, मोर, हाथी, शुअर, बकरी व मुर्गियाँ पाला करते थे। इन लोगों को घोड़े और लोहे की जानकारी नहीं थी,अभी तक लोहे की कोई वस्तु नहीं मिली है। अतः सिद्ध होता है कि इन्हें लोहे का ज्ञान नहीं था।

सिंधु घाटी सभ्यता के स्थल सबसे अधिक कहाँ से मिले हैं?

सिंधु घाटी सभ्यता के 1400 केन्द्रों को खोजा जा चूका है जिसमे से 925 केंद्र भारत में है| स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में हडप्पा संस्कृति के सबसे अधिक स्थल गुजरात में खोजा गया है।

कूबड़ वाला बैल सिंधु घाटी सभ्यता में कहाँ से मिला?

सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों को कूबड़ वाला सांड अत्यधिक प्रिय था , परन्तु इसके प्रमाण कहाँ से प्राप्त हुए है इसका वर्णन साफ नहीं है ।

सिंधु सभ्यता में कौन गोदी युक्त स्थल है?

लोथल को मिनी हडप्पा के नाम से भी जाना जाता है। लोथल गोदी जो कि विश्व की प्राचीनतम ज्ञात गोदी है, सिंध में स्थित हड़प्पा के शहरों और सौराष्ट्र प्रायद्वीप के बीच बहने वाली साबरमती नदी की प्राचीन धारा के द्वारा शहर से जुड़ी थी, जो इन स्थानों के मध्य एक व्यापार मार्ग था।

सिंधु घाटी सभ्यता की मोहरे किस से बनाई जाती थी?

सिंधु घाटी सभ्यता की मुहर सेलखड़ी नामक पत्थर से बनाई जाती थी।

सिंधु घाटी सभ्यता में स्टेडियम के परिणाम कहां मिले?

धौलावीरा एकमात्र ऐसी जगह है , जहा से स्टेडियम के साक्ष्य प्राप्त हुए है । भारत में स्थित सिंधु सभ्यता की दूसरी सबसे बड़ी बस्ती है , जो तीन भागो में विभक्त एक आयताकार नगर हुआ करता था. यहाँ से कुँए के भी प्रमाण मिले है , जिसके कारण इसका नाम धौलावीरा रखा गया ।

हड़प्पा सभ्यता का प्रचलित नाम क्या है?

हड़प्पा सभ्यता का प्रचलित नाम सिंधु घाटी की सभ्यता है । सिंधु , पाकिस्तान में स्थित एक प्रमुख नदी का नाम है , जो पाकिस्तान में स्थित हड़प्पा नमक स्थान पर है।

सिंधु घाटी सभ्यता में सोना कहाँ से आयात किया जाता था?

हड़पपा के लोग ताँबा खेतडी (राजस्थान) तथा बलूचिस्तान से प्राप्त करते थे, व सोना कर्नाटक तथा अफगानिस्तान से प्राप्त करते थे.

सिंधु घाटी सभ्यता के लोग किस पशु को नहीं जानते थे

सिन्धु घाटी सभ्यता के लोग गाय, भैंस, भेड़, बकरी, बैल, कुत्ते, बिल्ली, मोर, हाथी, शुअर, बकरी व मुर्गियाँ पाला करते थे। इन लोगों को घोड़े की जानकारी नहीं थी.

सिंधु घाटी सभ्यता में सूचना पटल के साक्ष्य कहाँ से मिले?

धौलाविरा के किले के एक गेट के ऊपर उस जमाने का एक साइन बोर्ड मिला है, जिस पर दस बड़े अक्षरों में कुछ लिखा हुआ है, जो पांच हजार साल बाद भी सुरक्षित है। शहर का नाम हो या प्रांतीय अधिकारियों का नाम, यह आज भी एक रहस्य है। ऐसा लगता है कि शहरवासियों का स्वागत किया जा रहा है.

मोहन जोदड़ो( मुअनजो दड़ो)  में कितने कुएं थे?

मोहन जोदड़ो में करीब 700 कुएँ थे।

सिन्धु घाटी सभ्यता प्रश्नोत्तर

सिन्धु घाटी सभ्यता प्रश्नोत्तरी इसमें सिन्धु घाटी सभ्यता से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्न दिए गएँ है जोकि परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण सावित हो सकता है.

प्रश्न 1. हड़प्पा सभ्यता की खोज किसने किया था?

(A) जॉन मार्शल
(B) आर.डी. वनार्जी
(C) दयाराम साहनी
(D) ए. कनिंघम

उत्तर – दयाराम साहनी

प्रश्न 2. सिन्धु सभ्यता का मान्याप्राप्त काल है?

((A) 2800 ई० पू० – 2000 ई० पू०
(B) 2350 ई० पू० – 1750 ई० पू०
(C) 3500 ई० पू० – 1800 ई० पू०
(D) इनमे से कोई नहीं

उत्तर – 2350 ई० पू० – 1750 ई० पू०

प्रश्न 3. सिन्धु घाटी की सभ्यता निम्नलिखित में से किसके समकालीन नहीं था?

(A) मिस्र की सभ्यता का
(B) मेसोपोटामिया की सभ्यता का
(C) किट की सभ्यता का
(D) चीन की सभ्यता का
उत्तर – किट की सभ्यता का
प्रश्न 4. कालीबंगन भारत के किस राज्य में स्थित है?
(A) गुजरात में
(B) राजस्थान में
(C) पंजाब में
(D) मध्य प्रदेश में
उत्तर – राजस्थान में
प्रश्न 5. हड़प्पा काल में मुद्रा के निर्माण के लिए किसका प्रयोग किया जाता है?
(A) कांसा
(B) तांबा
(C) लोहा
(D) सेलखड़ी 
उतर – सेलखड़ी
प्रश्न 6. हड़प्पा सभ्यता किस युग की थी?
(A) पुरापाषण काल
(B) नव पुरापाषण काल
(C) कांस्य युग
(D) लौह युग
उत्तर – कांस्य युग
प्रश्न 7. सिन्धु सभ्यता के घर किससे बने होते थे?
(A) बांस से
(B) पत्थर से
(C) ईट से
(D) लकड़ी से
उत्तर – ईट से
प्रश्न 8. सिन्धु सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यावसाय क्या था?
(A) पशुपालन
(B) कृषि
(C) व्यापार
(D) शिकार
उत्तर – व्यापार
प्रश्न 9. हड़प्पा सभ्यता के निवासी कहलाते है?
(A) जनजातीय
(B) ग्रामीण
(C) शहरी
(D) खानाबदोश
उत्तर – शहरी
प्रश्न 10. हड़प्पावासी किसके उत्पादन से सबसे आगे थे?
(A) कपास
(B) जौ
(C) गेहू
(D) औजार
उत्तर – कपास

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