आशुतोष द्विवेदी

आशुतोष द्विवेदी की कविता

‘आपस में सब भाई-भाई हैं’, ऐसा जब भी लिखना,
पहले थोड़ा समझाकर ‘भाई’ का मतलब भी लिखना

कलम छीन लेंगे, कागज़ फाड़ेंगे ये दुनिया वाले,
आँसू और लहू से सारी सच्चाई तब भी लिखना

वैसे लोकतंत्र है फिर भी अपने दस्तावेज़ों पर,
सब बातों के साथ जाति भी लिखना, मज़हब भी लिखना

मैं बहका, मैं भटक गया, इसको भी करना दर्ज़ मगर,
उसकी मादकता, उसका आकर्षण, वो सब भी लिखना

ऊपर वाले को कुछ मेरे बारे में जब भी लिखना,
हर मज़हब पे’ हँसने वाला मेरा मज़हब भी लिखना

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