जोगीमारा की गुफा | Jogimara Cave

जोगीमारा गुफा की स्थिति

जोगीमारा की गुफा मध्य प्रदेश की सिरगुजा रियासत के अन्तर्गत स्थित थी। यह गुफा अमरनाथ नामक स्थान में नर्मदा के उद्गम पर स्थित है। अमरनाथ रामगढ़ की पहाड़ियों पर स्थित है और एक तीर्थ स्थान है। 

इस गुफा तक पहुँचने के लिये अभी पूर्ण सुविधा नहीं है और हाथी पर सवार होकर यात्रा करनी पड़ती है। इस गुफा के समीप सीतायोगा या सीतालांगड़ा गुफा है जो एक प्रेक्षागृह थी। 

कहा जाता है कि इस गुफा के प्रेक्षागृह में जो नटी अभिनय करती थी जोगीमारा गुफा उसका ही निवास स्थान है। चित्रों के विषय देखने से ज्ञात होता है कि यह गुफा संभवतः वरुण देवता का मंदिर थी और जैन धर्म का इसकी कला पर प्रभाव पड़ा था। 

इस गुफा में उत्कीर्ण लेखों के अध्ययन से यह अर्थ निकाला गया कि यह गुफा वरुण देवता का मंदिर थी और एक देवदर्शनी या देवदासी देवता की सेवा में यहाँ रहती थी। 

डॉ० व्लाख के अनुसार इस गुफा के लेख तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के हैं यहाँ के चित्रों की रचना शैली समकालीन भरहुत और साँची की मूर्तिकला से मिलती-जुलती है, इस कारण इन चित्रों का सम्मानित समय दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व (मौर्य काल) है, परन्तु यह चित्र किसी प्रकार से भी प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व के बाद के नहीं हैं। 

१६१४ ई० पू० में स्व० असित कुमार हाल्दर तथा क्षेमेन्द्र नाथ गुप्त ने जोगीमारा के चित्रों का अध्ययन किया और इनके सम्बन्ध में विवरण प्रस्तुत किये।

इस गुफा के भित्तिचित्र ऐतिहासिक काल की भारतीय चित्रकला के प्राचीनतम उदाहरण हैं। सूक्ष्मता से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि इन चित्रों को पुनः ऊपर से रंग भरकर सुधारने की निष्फल चेष्ट की गई है। ऊपर से लगाये गए रंग तथा रेखाएं अलग दिखायी पड़ती हैं। इस गुफा के चित्रों के विषय बहुत रोचक हैं। 

यह गुफा बहुत संकरी और छोटी है। इसकी लम्बाई दस फुट और चौड़ाई तथा ऊँचाई छः-छः फुट है और छत को एक आदमी खड़ा होकर सरलता से छू सकता है, इस कारण बहुत से चित्र नष्ट हो गए हैं। यहाँ पर सर्वप्रथम छत पर पलास्तर चढ़ाकर विधिवत् भित्तिचित्रण प्रणाली में चित्र बनाये गए हैं। 

यहाँ पर पशु-पक्षी, स्त्री-पुरुष, मकान, तालाब पुष्प आदि का अंकन श्वेत, लाल तथा काले रंग से किया गया है। इन चित्रों से उस समय की विकसित सभ्यता का ज्ञान होता है कुछ विद्वानों ने इन चित्रों की परम्परा को ही अजंता की आरंभिक भित्तिचित्रण शैली का प्रेरक माना है। यह गुफा चित्र वैदिक काल के अन्तर्गत आ जाते हैं।

जोगीमारा गुफा के चित्र | Pictures of Jogimara Caves

स्व० असित कुमार हाल्दर ने इस गुफा में प्राप्त सात चित्रों के खण्डित अवशेषों का वर्णन दिया है। कुछ लेखकों ने सातवें चित्र को दो भागों में बाँटा है। इस प्रकार उन्होंने आठ चित्र माने हैं। 

यह चित्र ऐकेन्द्रिक वृत्तों में बनाये गए हैं। सर्वप्रथम भारतीय चित्रकला में जोगीमारा की गुफा में छतों पर बने चित्रों के उदाहरण प्राप्त होते हैं और भित्तिचित्रों की निर्माण तकनीकी का श्रीगणेश या नवीन अध्याय इसी गुफा में आरंभ होता है।

जोगीमारा के भित्तिचित्र | Jogimara’s frescoes

(१) इस दृश्य में कुछ आदमियों की आकृतियों तथा हाथियों के चित्र अंकित किये गए हैं। इस दृश्य में नदी के जल का अंकन लहरदार रेखाओं से किया गया है। जल में एक बड़ी सील मछली बनायी गई है। कदाचित यह मछली नहीं मगर है और यह चित्र गज-ग्रह की पौराणिक कथा से सम्बन्धित है।

(२) इस चित्र में कुछ व्यक्ति एक वृक्ष के नीचे बैठे विश्राम कर रहे हैं। इस वृक्ष में केवल तीन-चार डालियों में एक-दो पत्तियाँ हैं जो लाल रंग से बनायी गई हैं वृक्ष का तना मोटा तथा सरल है।

(३) इस चित्र में सफेद पृष्ठभूमि पर काली रेखाओं के द्वारा एक बाग का दृश्य अंकित किया गया है। इस चित्र में लाल लिली (कुमुदिनी) के पुष्प बनाये गए हैं। एक युगल इन पुष्पों के ऊपर नृत्य कर रहा है। 

यह युगल लाल रंग से बनाया गया है। (४) इस चित्र में गुड़िया जैसे बोने आकार के अनुपात रहित मनुष्य चित्रित है। इस चित्र में एक मनुष्य के सिर पर चोंच बनायी गई है। बौने के अंकन की परम्परा भारतीय मूर्ति तथा चित्रकला में बहुत प्राचीन है। 

(५) इस दृश्य में एक स्त्री लेटी है (सम्भवतः नर्तकी है) और उसके चारों और गायन-वादन में रत कुछ अन्य मानव आकृतियाँ पाल्थी मारे बैठी बनायी गई हैं। इन चित्रों की रेखाएँ अजंता के आरंभिक चित्रों के समान हैं।

(६) इस चित्र में प्राचीन ढंग के रथों जैसे चैत्यों का अंकन दिखाई पड़ता है। (७) इस दृश्य में ग्रीक रथों के समान भवन बनाये गए हैं। यह चित्र तथा इसके आगे का अधिकांश भाग नष्ट हो गया है। अतः अधिक अनुमान लगाना कठिन है।

डॉ० लाख तथा विंसेंट स्मिथ ने इन्हीं चित्रों का वर्णन भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रस्तुत किया है। स्मिथ ने सम्पूर्ण चित्रों में से चार सबसे अधिक सुरक्षित चित्रों का वर्णन दिया हैं जो निम्न प्रकार से है 

(अ) केन्द्र में एक वृक्ष के नीचे पुरुषाकृति बैठी बनायी गई है, उसके साथ में नर्तकियों तथा गवैये बायीं ओर बैठे बनाये गए हैं। दाहिनी ओर एक जुलूस बनाया गया है जिसमें एक ही हाथी चित्रित है।

(ख) इस पैनल में कई पुरुषाकृतियाँ, एक रथ का पहिया या चक्र और ज्यामितिक अलंकरण अभिप्राय बनाये गए हैं।

(स) इस पैनल के आधे भाग में केवल अस्पष्ट पुष्पों घोड़ों और बस्त्रधारी पुरुषों के चिन्ह हैं। पैनल के दूसरे आधे भाग में वृक्ष है जिस पर एक चिड़िया बैठी है और एक नग्न लड़का उसकी शाखाओं में है इस पेड़ के चारों ओर अनेक नग्न आकृतियों जमा हैं जिनके बाल सिर के बायीं ओर कसकर गाँठ में बँधे हुए बनाये गए हैं।

(द) इस पैनल के आधे ऊपरी भाग में एक नग्न पुरुषाकृति पाल्थी मारे बैठी बनायी गई है और तीन वस्त्रधारी पुरुष खड़े हैं। इसी प्रकार की दो अन्य बैठी आकृतियाँ और एक ओर तीन खड़ी आकृतियाँ बनायी गई हैं। 

नीचे की ओर एक मकान है जिसमें नाल – आकार की चैत्य जैसी खिड़की का प्रयोग है। इस मकान के सामने एक हाथी तथा तीन वस्त्रधारी पुरुष खड़े बनाये गए हैं। 

इस दल के पास तीन घोड़ों का रथ है जिसमें छत्र लगा है और दूसरा हाथी एक परिचारक सहित खड़ा है। इस पैनल के दूसरे आधे भाग में इसी प्रकार की आकृतियाँ हैं।”

जोगीमारा की गुफा में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के और कुछ बाद के लेख हैं। अतः यह चित्र भी प्राचीन मानना चाहिए परन्तु इन चित्रों का समय पाश्चात्य विद्वान ने प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व माना है इस गुफा में प्राप्त चित्रों के आधार पर इन चित्रों के विषय डॉ० लाख ने ग्रीक, स्व० रामकृष्ण दास ने जैन और स्व० असित कुमार हाल्दर ने रायगढ़ के प्राचीन मंदिरों में रहने वाली देव-दासियों के विषयों से मिलते-जुलते माने हैं।

जोगीमारा गुफा के चित्रों की विशेषताएँ | Features of Jogimara Cave Paintings

इन चित्रों की दोनों जैसी आकृतियों की बनावट तथा शैली भरहुत शैली की मूर्तियों से मिलती-जुलती है। साँची की मूर्ति शैली का इन चित्रों पर पर्याप्त प्रभाव है, इस कारण इनको स्मिथ ने प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व से पहले का माना है।

चित्रों को चूने से पुते सफेद धरातल पर बनाया गया है। इन चित्रों में काले ‘ह फल’ से बने वनस्पतिक रंग तथा लाल, पीले एवं सफेद खनिज रंगों का प्रयोग है। इन चित्रों की सीमा रेखाएँ लाल रंग से बनायी गई है। आकृतियों की आँख सफेद तथा काले और बाल काले रंग से बनाये गए हैं। चित्रों के विभाजन के लिये बनाये गए हाशिए में पीले रंग का प्रयोग है।

भारतीय लघु चित्रों की पुस्तकें | Books of Indian Miniature Paintings

1. Birds and Animals: In Mughal Miniature Paintings

Birds and Animals: In Mughal Miniature Paintings

Birds and Animals: In Mughal Miniature Paintings

वनस्पतियों और जीवों का चित्रण भारतीय चित्रकला परंपराओं का एक आंतरिक हिस्सा रहा है। मुगलों ने अपनी आकर्षक पेंटिंग में अपनी पेंटिंग की कला को एक विशेष गुण देने के लिए पक्षी और जानवरों की कल्पना का इस्तेमाल किया। 70 से अधिक दृष्टांतों वाली यह पुस्तक मुगल चित्रों में उपयोग किए जाने वाले पक्षियों और जानवरों का एक सर्वेक्षण है, विशेष रूप से सम्राट अकबर और जहांगीर के शासनकाल के दौरान। ऐतिहासिक विवरणों के साथ, यह दर्शाता है कि विभिन्न प्रकार के पक्षियों और जानवरों के चित्रण ने संदर्भ या आख्यानों की मांगों के अनुरूप महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कलाकारों ने जंगली और घरेलू दोनों तरह के जानवरों को समान क्षमता के साथ चित्रित किया। जहांगीर ने एल्बम चित्रों की शुरुआत की और जीवों के व्यक्तिगत चित्र अध्ययन में रुचि दिखाई। कुल मिलाकर, यह मुगल कला में जीवों के सूक्ष्म चित्रण और इसकी स्थायी सुंदरता को दर्शाता है। इसमें कई कलाकारों के नामों का उल्लेख है। यह पुस्तक इतिहासकारों को विशेष रूप से मध्यकाल के कला इतिहास का अध्ययन करने वालों के लिए रुचिकर लगेगी।

2. Bhartiya Rajasthani Laghu Chitrakala Gaurav / भारतीय राजस्थानी लघु चित्रकला गौरव: Mewad Shaily se Kota Shaily tak

Bhartiya Rajasthani Laghu Chitrakala Gaurav / भारतीय राजस्थानी लघु चित्रकला गौरव: Mewad Shaily se Kota Shaily tak

समय-समय पर पाठकों की रुचि के कई अनेक लेखोन ने भारती राजस्थानी चित्रकला के इतिहास पर पुस्तक लिखी। राजस्थानी चित्रकला के कालखंड के इतिहास का गहन तथा वास्तुनिष्ट अध्ययन करने के लिए संछिप्त विभिन्नात्मक तथा सूक्ष्म तत्त्वों को लिखने की आवशयकता का परिनम ये पुस्तक है।

इतिहास लिखने में भाषा बदल जाती है और नहीं बदलते। तथा केवल तब बदलते हैं, जब नई खोज होती है, अत: सभी उत्थान राजस्थानी पुस्तकों के लेख विद्यावनों के प्रति सदर प्यार व्यक्त करना मेरा परम कार्तव्य है। अत: उन सभी विद्यावनों के प्रति माई सदर कृतज्ञता ज्ञापित करता हूं। जिन्के लिखे कला साहित्य ने सभी का मार्ग दर्शन किया है।

अत: मेरी आशा है की ये पुस्तक पाठक और कला में रुचि रखने वाले विद्यार्थियों के लिए अतिंत उपयोगी एवम महात्वपूर्ण सिद्ध होगी।

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