Poetry of Shamsher Bahadur Singh

शमशेर बहादुर सिंह

आए भी वो गए भी वो

‘आए भी वो गए भी वो’–गीत है यह, गिला नहीं
हमने य’ कब कहा भला, हमसे कोई मिला नहीं।

आपके एक ख़याल में मिलते रहे हम आपसे
यह भी है एक सिलसिला गो कोई सिलसिला नहीं।

गर्मे-सफ़र हैं आप तो हम भी हैं भीड़ में कहीं
अपना भी काफ़िला है कुछ आप ही का काफ़िला नहीं।

दर्द को पूछते थे वो, मेरी हँसी थमी नहीं
दिल को टटोलते थे वो, मेरा जिगर हिला नहीं।

आई बहार हुस्न का ख़ाबे-गराँ लिए हुए :
मेरे चमन कि क्या हुआ, जो कोई गुल खिला नहीं।

उसने किए बहुत जतन, हार के कह उठी नज़र :
सीनए-चाक का रफ़ू हमसे कभी सिला नहीं।

इश्क़ की शाइरी है ख़ाक़, हुस्न का ज़िक्र है मज़ाक
दर्द में गर चमक नहीं, रूह में गर जिला नहीं

कौन उठाए उसके नाज़, दिल तो उसी के पास है;
‘शम्स’ मज़े में हैं कि हम इश्क़ में मुब्तिला नहीं।

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