वैदिक सभ्यता का उदय | Rise of Vedic Civilization

धातु-युग

प्रागैतिहासिक काल के समाप्त होते ही धातु युग के साथ वैदिक काल का उदय होता है। दक्षिणी भारत में पाषाण काल के पश्चात् लौह युग ही आरम्भ हुआ, परन्तु उत्तरी भारत में ताम्र और सिंध में कांस्य युग के पश्चात् ही सम्पूर्ण भारत में लोह युग आया यद्यपि दक्षिण भारत में बहुत सी काँसे की बनी सामग्री प्राप्त हुई है परन्तु यह वाद की है या दूसरे क्षेत्र से आयातित है।

मध्य प्रदेश के गुनजेरिया नामक ग्राम में तांबे के बने यंत्रों के ४२४ उदाहरण प्राप्त हुए हैं जो लगभग २,००० वर्ष ईसा पूर्व के हैं। इसी प्रकार उत्तरी भारत में कानपुर, फतेहपुर, मैनपुरी तथा मथुरा जिले में तांबे के बने प्रागैतिहासिक यंत्र तथा हथियार प्राप्त हुए हैं।

उत्तर पूर्व में हुगली से लेकर पश्चिम में सिंध तक विस्तीर्ण क्षेत्र से तावे के हंसियों, तलवारों तथा भालों के फलकों आदि के उदाहरण प्राप्त हुए हैं। ताम्र और कांस्य युग का उत्तरी भारत में बहुत पहले ही उदय हो चुका था और लौह-युग भी दक्षिणी भारत से पहले ही आरम्भ हो गया था।

दक्षिण भारत में, पाषाण युग कालान्तर तक चलता रहा और बाद में एक साथ लौह युग आया। अथर्व वेद में ऐसे प्रमाण मिलते हैं जिनसे उत्तरी भारत में लोहे का प्रयोग सिद्ध हो जाता है।

अथर्व वेद अनुमानतः २.५०० ई० पूर्व का है। दूसरे ग्रीक इतिहासकार हेराडोट्स के लेखों से ऐसा ज्ञात होता है कि फारस के सम्राट एकसराएक्स (Xerxes) की अध्यक्षता में ४८० ई० पू० में जो भारतीय सेना यूनान के विरुद्ध लड़ी उसने लोहे के फलकों से युक्त तीरों का प्रयोग किया। ऐसे प्रमाण भी प्राप्त होते हैं कि सिकंदर के भारत पर आक्रमण करने के समय भारतीयों ने युद्ध में स्पात (स्टील) तथा लोहे के फलक वाले तीरों का प्रयोग किया।

खेद है कि इस समय की कला के उदाहरण बहुत कम प्राप्त है, केवल मोहनजोदड़ो और हड़प्पा क्षेत्र की खुदाई से कांस्य युग की कला के उदाहरण प्राप्त हुए हैं।

मोहनजोदड़ो और हड़प्पा सिन्धु नदी की घाटी में स्थित थे और यहाँ पर एक उच्च सभ्यता विकसित हुई. इसी कारण इसको विद्वानों ने सिन्धु घाटी सभ्यता’ के नाम से पुकारा है। यह वैदिक सभ्यता विस्तीर्ण उत्तरी भारत के मैदानों में फैली हुई थी।

वैदिक काल की भित्तिचित्र कला | Vedic Period Frescoes

युराल पर्वत के दक्षिण की ओर से तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के मध्य आर्य जातियाँ यूरोप, पश्चिमी एशिया तथा भारत की ओर देशान्तर निवास हेतु आयीं। इन जातियों ने एशिया तथा भारत पर अपना प्रभाव जमाना आरंभ कर दिया। भा

रतीय आर्य जाति ने ईसा से दो हजार वर्ष पूर्व ईरानी आर्य जाति से सम्बन्ध विच्छेद कर लिया और भारतीय आर्य शाखा के लोग तुर्खिस्तान (आधुनिक रूस) से अफगानिस्तान होकर भारत आये। भारतीय आर्य शाखा युद्धप्रिय अनिकेत (खानाबदोश) जाति थी।

यह लोग प्राचीर युक्त लकड़ी तथा मिट्टी के बने मकानों वाले गाँवों में रहते थे। इस प्रकार सिन्धु क्षेत्र पर विजय प्राप्त कर और सिन्धु घाटी सभ्यता को समाप्त कर यह जाति पूर्व की ओर बढ़ी और १४०० ई० पूर्व से १००० ई० पू० के मध्य सम्पूर्ण उत्तरी भारत पर इनका अधिकार हो गया।

इस काल का इतिहास अस्पष्ट है। अतः इस काल की चित्रकला की प्रगति का ज्ञान साहित्यिक रचनाओं जैसे वेदों, महाभारत, रामायण या पुराणों में प्राप्त कला प्रसंगों से प्राप्त किया जा सकता है।

गौतम बुद्ध का जन्म चौथी शताब्दी ईसा पूर्व माना जाता है। उनके धर्म प्रचार के साथ-साथ कला विकास के भी बौद्ध साहित्य में उल्लेख प्राप्त होने लगते हैं। दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व तक वैदिक साहित्य की रचनाओं का काल समाप्त हो जाता है और उनका स्थान बौद्ध धर्म ले लेता है।

इस समय की चित्रकला के प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं और जो चित्र प्राप्त हैं वे साधारण स्तर के हैं। यह चित्र आज जोगीमारा की गुफाओं में ही प्राप्त है अन्यथा इस काल की चित्रकला का अनुमान लगाने के लिए साहित्यिक प्रसंगों पर निर्भर रहना पड़ता है।

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