क्रीटन कला | Art of Crete

पाषाण काल तथा कांस्य युग में ग्रीस में जो भिन्न जातियाँ बसी थीं एवं जिन्होंने ग्रीस पर आक्रमण किया उनका ग्रीक सभ्यता से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं था किन्तु उन्होंने उस संस्कृति को कुछ सीमा तक अवश्य प्रभावित किया। ग्रीक भाषा भाषी लोग ग्रीस में ई.स. 2000 वर्ष पूर्व के करीब आ बसे व उनके द्वारा ग्रीस, क्रीट व पश्चिमी एशिया के कुछ प्रदेशों में विकसित संस्कृति माइसेनियन संस्कृति कहलाती है।

सेस्क्लो के उत्खनन में नव पाषाणकालीन चित्रित मिट्टी के बरतन व छोटी स्त्री मूर्तियाँ मिली हैं जो अनातोलिया में प्राप्त बरतनों व मूर्तियों से मिलती-जुलती हैं। क्रीट की कला का विकास होने से पहले साइक्लाडेस द्वीप के निवासी एजियन द्वीप समूह में कलाक्षेत्र में अग्रणी थे।

सिरोस द्वीप में उनके द्वारा बनायी कड़ाही के समान आकार की सुन्दर परिकल्पना से अलंकृत वस्तुएँ मिली हैं। उन्होंने आसपास के प्रदेशों में प्राप्त समपारदर्शक संगमरमर की ज्यामितीय आकार की छोटी मूर्तियाँ बनायी हैं जो अधिकतर स्त्रियों की हैं।

एजियन द्वीप समूह पर क्रीट के राजशासन का आधिपत्य प्रस्थापित होते ही क्रीट की कला ने न केवल उस द्वीप समूह की बल्कि ग्रीस की मुख्य भूमि की कला को प्रभावित किया। अतः ग्रीक कला के अध्ययन से पहले क्रीट की कला का अध्ययन करना आवश्यक होता है।

क्रीट के नोसास नगर के उत्खननकर्ता आर्थर इवान्स ने क्रीटन कला को तीन काल खण्डों में विभाजित किया है और वे हैं आरम्भिक, मध्य एवं उत्तरी मिनोअन काल। इनका नामकरण पौराणिक राजा मिनोस के नाम पर किया है।

तीनों काल खण्डों का काल निर्णय क्रीट की प्राचीन मृण्पात्र कला शैलियों के अध्ययन के आधार पर किया है। आरम्भिक मिनोअन काल (ई.स. 2800 पूर्व से ई.स. 2000 पूर्व तक) में क्रीट के प्रसिद्ध राजमहलों का निर्माण नहीं हुआ था।

मध्य मिनोअन काल में (ई.स. 2000 पूर्व से ई.स. 1550 पूर्व तक) नोसास, फेस्टास व मालिया के राजमहलों का निर्माण हुआ। उत्तरी मिनोअन काल में (ई.स. 1550 पूर्व से ई.स. 1400 पूर्व तक) थेरा के ज्वालामुखी के भीषण विस्फोट में सभी राजमहल नष्ट हुए।

आरम्भिक मिनोअन काल के मृणपात्र पहिये की सहायता के बिना बनाये हुए होते हुए भी आकार में बहुत सुन्दर हैं। आग में पकाकर काले करने के पश्चात् उन पर बादामी सफेद रंग से सरल अलंकरण किया गया है। इस काल को सबसे समृद्ध कला के नमूने मोक्लोस के मकबरों से प्राप्त हुए। मकबरों की कलाकृतियों पर मिस्र की कला का प्रभाव है।

आकर्षक शिरा प्रस्तर की खोदाई करके बनाये कलशों में से एक के ढक्कन को लेटे हुए शिकारी कुत्ते की आकृति से अलंकृत किया है। ऐसा ही अलंकृत ढक्कन जाकरों में मिला है पहिये का प्रयोग शुरू होते ही मिनोअन मृणपात्र कला में उत्कृष्ट पात्रों की निर्मिति शुरू हुई जो कामारेस पात्र नाम से प्रसिद्ध है।

काला रंग देकर पात्रों पर सफेद, नारंगी, लाल व पीले रंगों में ज्यामितीय आकृतियों से अलंकरण किया है जिसमें फूलों व मछलियों के सरलीकृत आकारों का भी कहीं प्रयोग है। पात्रों के आकार-सौन्दर्य के प्रति मिनोअन कारीगरों ने अति संवेदनशीलत्व प्रकट किया है। इस काल के मानवाकृति युक्त भित्तिचित्रण के उदाहरण कहीं प्राप्त नहीं हुए हैं।

मध्य मिनोअन काल में ई.स. 1700 वर्ष पूर्व के करीब क्रीट के सभी राजमहल भयानक भूचाल में नष्ट हुए। किन्तु इस दैवी प्रकोप से क्रीट की समृद्धि को कोई हानि नहीं पहुँची व पुराने राजमहलों का पुनः निर्माण किया गया।

नोसास के पुनः निर्मित राजमहल को फ्रेस्को चित्रों से सजाया गया था। महल के ऊपर के एक कक्ष का छोटा फ्रेस्को चित्र गिरकर भग्न होने से उसका पुनरुद्धार करना पड़ा। इसमें राजमहल से संलग्न मंदिर में हो रहे धार्मिक विधि-विधान को चित्रित किया गया है।

प्रांगण में स्त्री-पुरुष दर्शकों की भीड़ है व बाहर नीली व सुनहरी पोशाक पहने हुए दरवारी स्त्रियाँ आपस में गपशप करती हुई दिखायी हैं। एक अन्य हिस्से में जैतून के बाग में हो रहे धार्मिक नृत्य को देखते हुए दरबारी व्यक्तियों का चित्र है। किन्तु चित्र छुट्टी में मनाये जा रहे वन विहार के समान दिखायी देता है व उसमें धार्मिकता का पुट अल्पमात्र है।

दर्शकों की भीड़ का चित्रण प्रभाववादी शैली के अनुसार लाल व सफेद रंग के धब्बों से किया है जो मिनोअन कला की दृष्टि से एक अनोखी बात है। चित्र की ताजगी व नैसर्गिकतावादी प्रभाव के गुण तत्कालीन कलाकृतियों में अन्यत्र कहीं दिखायी नहीं देते।

मिनोअन फ्रेस्को चित्रों के विषय कई जगह मिस्त्री चित्रकला के विषयों से मिलते-जुलते हैं किन्तु चित्रण में मिस्र के कलाकारों की बौद्धिकता का अभाव है। अवकाश में आकारों को सुस्थापित करने की समस्या को सुलझाने के प्रयत्न मिनोअन चित्रकारों ने नहीं किये। उन्होंने दरबारी विलासिता, सांड के साथ खेलकूद, वसन्त विहार जैसे विषयों के उन्मुक्त चित्रण द्वारा अपनी कला में सुखवादी विचारधारा को महत्त्व दिया।

मिस्त्री चित्रकारों के विपरीत मिनोअन चित्रकारों ने सच्ची फ्रेस्कोपद्धति से भित्ति चित्रण किया। दीवार को चूना प्लास्टर की दो परतों से आच्छादित करने के बाद वे उस पर नारंगी या लाल रंग की रेखाओं से परिकल्पना बनाते थे। उसके पश्चात् प्लास्टर की एक और परत देकर उस पर रंगांकन करते थे।

इसी वजह से आग व भूचाल के प्रकोपों के बावजूद एवं प्लास्टर के अनेक टुकड़े होने पर भी चित्रों के रंग नष्ट नहीं हुए। मिनोअन चित्रकारों की प्राकृतिक वस्तुओं के चित्रण में रुचि थी। इसका कारण सम्भवतः यह था कि वे फूल व पक्षियों को सृष्टि की पवित्र वस्तुएं मानते थे।

हागिआ त्रिआदा के महल के एक फलक चित्र में पुजारिन को लिली, क्रोकस व पान्सी के फूलों के बीच नतमस्तक चित्रित किया है। दूसरे फलक चित्र में बैठी हुई देवी का चित्र व तीसरे में काली बिल्ली मारवल्ली के कोमल गच्छे के पीछे पैंतरा लेकर चेड़ पक्षी के ऊपर झपट पड़ने का मौका देखते हुए चित्रित की है।

पक्षी, मारवल्ली का गुच्छा व बिल्ली की आकृतियाँ लयबद्ध हैं तथा बिल्ली को एकाग्रचित्त अंगभंगिमा बहुत ही कुशलतापूर्ण ढंग से अंकित है। देवी की आकृति के साथ फूल व प्राणियों का चित्रण शायद इसलिए हुआ है कि उनको देवी की उपासना से सम्बद्ध मानते थे।

मिस्र के मकबरों में इसके समान प्राकृतिक दृश्य व वस्तुओं का चित्रण हुआ है। किन्तु उनका पूरे चित्र के अन्तर्गत गौण व बहुत छोटा स्थान है। इसके विपरीत क्रीट के राजमहलों में कहीं समूचे कक्ष को प्राकृतिक चित्रों से अलंकृत किया गया है।

नोसास के भवन के फ्रेस्को चित्रों के जीर्णोद्धार के समय यह ज्ञात हुआ कि वहाँ एक पूरी चित्रमालिका में बंदरों की टोली को चिड़ियों के घोंसलों पर छापा मारते हुए दिखाया था एवं आसपास के प्राकृतिक दृश्य में झरना, नीली चिड़िया, वन्य गुलाब व क्रोकस के फूलों को चित्रित किया था।

मिस्र के लोगों के विपरीत क्रीट के लोग सागर से अनुरक्त थे व उनकी कलाकृतियों में सागरीय अभिप्रायों को बहुत स्थान दिया गया है। मेलोस द्वीप के फिलाकाय नगर के मिनोअन शैली के तहत सूर्य किरणों में चमकती हुई लहरों पर प्रकाश में जगमगाती हुई उड़ती मछलियों को चित्रित किया गया है।

इसी के समान सागरीय दृश्य का चित्रण नोसास के एक महल में है जिसमें सूंसों को समुद्र में तैरते हुए दिखाया है। प्रकृति प्रेम के कारण उत्तरी मिनोअन काल के कामारेस मृण्पात्रों पर काली पृष्ठभूमि की जगह सफेद पृष्ठभूमि का प्रयोग करके प्राकृतिक अभिप्रायों को लेकर अलंकरण किया जाने लगा।

फेस्टोस महल की एक सुराही पर हवा में हिलती हुई घास की घनी पत्तियों का ज्यामितीय ढंग से अलंकरण किया है। सूंस, सीप, समुद्री अष्टपाद की लहरदार आलंकारिक आकृतियों से कई मृणपात्रों को सजाया है। ई.स. 1450 पूर्व के बाद मृणपात्र कला में एक कठोर शैली का प्रवेश हुआ जो महल शैली कहलाती है।

इसमें सम्मिति का महत्त्व था एवं परशु, गुलाब, पटेरा के फूल व शिरस्त्राण के रूढ़िबद्ध आकारों में अलंकरण किया जाता था। पात्र के हिस्से किये जाते थे व ऊपरी हिस्से में अलंकरण किया जाता था। आडम्बरपूर्ण बड़े कलशों को बहुत पसन्द किया जाता था जिनका शायद उपयोग से भी सजावट की दृष्टि से अधिक महत्त्व था।

इस प्रकार का परिवर्तन ई.स. 1450 पूर्व के बाद की चित्रकला में भी आ गया। हागिआ त्रिआदा की एक शवपेटिका के एक तरफ आदमियों का जुलूस समाधि पर भोग चढ़ाते हुए एवं स्त्रियों को दो सांकेतिक परशुओं से सूचित की गयी वेदिका पर वीणावादक की संगत लेकर तर्पण करते हुए चित्रित किया है।

दूसरी तरफ बलि देने के लिए बंधे हुए बैल का चित्र है व एक स्त्री दो परशुओं की वेदिका पर भोग चढ़ा रही है। मिनोअन कला में आकार का अवकाश के विचार से विश्लेषण नहीं किया है किन्तु आकृतियों की क्रियाविधि अभिनय, भावदर्शन, प्रभावोत्पादक ढंग से व निरीक्षणपूर्वक व्यक्त किये हैं व उनको कहीं रूढ़िबद्ध संस्थितियों में कठपुतलियों के समान अंकित नहीं किया है। घनत्व दर्शन में उनकी रुचि नहीं थी। शायद यह भी एक कारण है कि नोसास में बड़े पैमाने पर बनायीं पत्थर की मूर्तियाँ नहीं मिलीं।

यद्यपि मिनोअन कलाकारों ने मूर्तिकला की ओर ध्यान नहीं दिया, उनके द्वारा उत्कृष्ट उत्कीर्णन किए हुए पत्थर के पेय पात्र व कलश मिले हैं जिनमें जाकरो का कलश, लुनेरा कलश व वाफेइयो के दो सोने के प्याले सर्वांग सुन्दर हैं। जाकरो कलश पर पहाड़ी पर स्थित मंदिर की एवं द्वार पर बैठी हुई चार बकरियों की आकृतियाँ उत्कीर्ण की हैं।

लुनेरा कलश पर खेत के मजदूर कंधों पर ओसाई के साधन लेने कतार में जाते हुए एवं उनके आगे चार गायक मुंह खोल कर जोर से गाना गाते हुए उत्कीर्ण किए हैं। कुछ सीमा तक इस पर मिस्त्री कला का प्रभाव है। सोने के प्यालों पर बैलों को बन्दी बनाने का दृश्य है।

एक बैल उग्र होकर छुटकारा पाने की कोशिश में है, दूसरे ने शिकारी को अपने सींगों पर उठाया है तो तीसरा भागने की कोशिश में उछल रहा है। धार्मिक विषयों को लेकर चित्रण किये जाने पर भी क्रीटन कला में काव्य, मानवता व प्रकृति को अधिक महत्त्व दिया गया है व इसी वजह से मिस्री कला की रूढ़िबद्ध कठोरता उसमें नहीं है।

आधुनिक कला- जगत को क्रीटन कला का विशेष परिचय आर्नुवो कला के विकास के समय हुआ व उसकी आकार निर्माण में स्वतंत्र बुद्धि व प्रकृति पर आधारित आलंकारिक सौन्दर्य की शीघ्र ही प्रशंसा हुई।

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