द्वारका प्रसाद शर्मा

द्वारका प्रसाद शर्मा राजस्थान के उन वरिष्ठ कलाकारों में से थे, जो नवीन रूपों के निर्माण में सक्रिय रहे।

जन्म एवं शिक्षा 

कलाकार द्वारका प्रसाद शर्मा का जन्म 6 मार्च, सन् 1922 ई. को एक मध्यवर्गीय ब्राह्मण परिवार में हुआ। बाल्यावस्था से ही कला के प्रति रुचि व लगाव होने से आपने बीकानेर के परम्परागत कला में पारंगत प्रसिद्ध ‘उस्ता परिवार के सान्निध्य में कार्य शुरू किया।

सन् 1935 ई. तक ‘इलाही वक्ष उस्ता’ से पारम्परिक कला की सम्पूर्ण बारीकियों का अध्ययन कर इस शैली में उच्च कोटि के चित्र निर्मित करने में सफलता भी प्राप्त की।

कुछ समय पश्चात् द्वारका प्रसाद की यथार्थवादी कलाकार ‘मूलर’ से भेंट हुई और उन्हीं के गुरुत्व में रहकर प्लेट साफ करने से लेकर चित्र में रंग भरने तक का कार्य करने लगे। कुछ समय पश्चात् विधिवत् शिक्षा ग्रहण करने की जिज्ञासा ने उन्हें बम्बई पहुँचा दिया, जहाँ द्वारका प्रसाद ने ‘केतकर कला संस्थान’ में प्रवेश लिया और संस्थान का श्रेष्ठतम विद्यार्थी बनने में भी सफलता प्राप्त की।

द्वितीय विश्व युद्ध के समय परिवार के आग्रह पर वे पुनः बीकानेर लौट आए। अशांत मन ने उन्हें फिर दूसरे शहर कोलकाता पहुँचा दिया। वहाँ आर्थिक संकट ने उन्हें सिनेमा बैनर बनाने को मजबूर कर दिया, किन्तु इस कार्य से भी उन्हें मानसिक शांति नहीं मिली और पुन: राजस्थान लौट आये और तभी से कला जगत् में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

निशाचरी-रेखांकन ( पेंसिल & इंक )

कला चित्रण यात्रा 

द्वारका प्रसाद ने जिन विषयों को चुना, उन्हें चित्रांकित करने से पूर्व उसका बारीकी से अध्ययन भी किया, जिसका उदाहरण आपके द्वारा चित्रित उस विषय से संबंधित रेखाचित्र है, जिसमें मुख्य रूप से मानवाकृति, पशु-पक्षी हैं।

घोड़े को चित्रित करने से पूर्व आपने विश्वभर में पाये जाने वाले विभिन्न नस्लों के नर व मादा घोड़ों की शरीर रचना, विस्तृत ज्ञान (उसकी शरीर रचना विशेषता, समानता आदि) प्राप्त करने के बाद ही रेखाचित्र बनाये। 

अन्य विषयों में विभिन्न मानवों द्वारा भोगा जाने वाला सुख-दुःख, क्रोध, दुष्टता, प्रेम एवं घृणा है, जिसे आपने घटते हुए देखा है और इसी संदर्भ में चित्रों का निर्माण भी किया है। कुछ प्रसिद्ध चित्रों में ‘प्रसव पीड़ा’, ‘भिखमंगे’, “भटकती संतानें’, ‘निःसहाय’, ‘शिव तांडव’ आदि हैं।

इन सभी चित्रों में कलाकार ने तकनीकी अनुशासन का पूर्ण पालन किया। वैसे भी द्वारका जी की निजी विशेषता इनके द्वारा चित्रित ‘व्यक्ति चित्रों में पाई गई है, जिनमें ‘रवीन्द्र नाथ ठाकुर’, ‘उमर खय्याम’, ‘पंडित जवाहर लाल नेहरू’ आदि हैं। इसी के साथ-साथ ‘गणगौर कीझाँकी’, ‘मुगल राजपूत युद्ध’ कीशृंखला आदि भी उल्लेखनीय चित्र हैं।

इस प्रकार द्वारका जी ने विभिन्न तकनीकी प्रयोग द्वारा चित्र निर्माण किये, चाहे वे भित्तिचित्र हों, तैलरंग, टेम्परा या पेस्टल, सभी में लयात्मक एवं बारीक रेखाएँ, सौरभ एवं योजना दिखाई देती है।

रेखांकन खानाबदोस ( इंक )
रेखांकन खानाबदोस ( इंक )

प्रदर्शनी 

द्वारका जी सन् 1958 ई. से बराबर राज्य ललित कला अकादमी की वार्षिक प्रदर्शनियों में भाग लेते रहे हैं, साथ ही ‘कैनवास आर्टिस्ट्स ग्रुप’ की वार्षिक प्रदर्शनियों में भी। सन् 1967 ई. से वर्तमान तक ‘तूलिका कलाकार परिषद्’, उदयपुर की सालाना प्रदर्शनियों में अपनी सहभागिता निभाई है।

सन् 1961 ई. में दिल्ली में प्रथम अंतरराष्ट्रीय कृषि मेले’ के ‘राजस्थान मंडप’ में दो बड़े म्यूरल का निर्माण किया। सन् 1993 ई. में आपने ‘वीरा वर्ल्ड कांग्रेस’ की अन्तरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में भाग लिया, जहाँ ‘चार्ल्स फ्रेबी’ सहित देश के प्रसिद्ध कला-समीक्षकों ने आपके चित्रों की भूरि-भूरि प्रशंसा की।

पुरस्कार एवं सम्मान 

द्वारका प्रसाद को आज तक अनेक पुरस्कार एवं सम्मान मिल चुके हैं। राजस्थान ललित कला अकादमी द्वारा अपनी वार्षिक प्रदर्शनियों में उत्कृष्ट कृतियों हेतु सन् 1958, 1959, 1960, 1961 एवं 1967 ई. में पुरस्कृत किया। सन् 1979 ई. को आपको राज्य ललित कला अकादमी ने सर्वोच्च सम्मान ‘कलाविद्’ से सम्मानित किया।

सन् 1988 ई. में ऑल इंडिया फाइन आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स सोसायटी, नई दिल्ली ने वरिष्ठ कलाकार होने के नाते पुरस्कृत किया। सन् 1991 ई. में इसी संस्था ने अपनी राष्ट्रीय प्रदर्शनी में ‘महाभारत का अंत’ नामक कृति के लिये पुरस्कृत किया। सन् 1993 ई. में चित्रकला के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि के लिये ‘महाराणा मेवाड़ फाउन्डेशन’ द्वारा ‘महाराणा सज्जन सिंह अवार्ड’ से सम्मानित किया गया।

सन् 2001 ई. में महाराणा सवाई मानसिंह द्वितीय संग्रहालय द्वारा कला में उत्कृष्ट कार्य के लिये ‘महाराजा सवाई जगतसिंह पुरस्कार’ दिया गया। सन् 2002 ई. में पारम्परिक कलाकारों की सम्पोषक संस्था ‘सरस्वती कला केन्द्र’ ने ‘कला रत्नाकर’ से सम्मानित किया।

आप राज्य ललित कला अकादमी के संस्थापक सदस्य, उपाध्यक्ष एवं राज्य सरकार द्वारा ‘जर्नल कॉउंसिल’ के सदस्य के रूप में रहे हैं। सन् 1972 से 1977 ई. तक ‘सवाई मानसिंह मेडिकल कॉलेज’ में ‘मुख्य कलाकार’ के रूप में आपने सेवाएँ दी हैं।

द्वारका प्रसाद जीवनपर्यन्त सक्रिय चित्रण कार्य करते हुये अपने शिष्यों को भी चित्रकारी के हुनर सिखाने में व्यस्त रहे। 16 जून, 2009 को वे इस दुनिया से चल बसे।

Leave a Comment

15 Best Heart Touching Quotes 5 best ever jokes