मोहन शर्मा लाइफ | मोहन शर्मा के चित्र | मोहन शर्मा की कला | मोहन शर्मा की प्रदर्शनियाँ व पुरस्कार |MOHAN SHARMA LIFE | PAINTINGS OF MOHAN SHARMA | ART OF MOHAN SHARMA | MOHAN SHARMA’S EXHIBITIONS AND AWARDS

जन्म एवं आरम्भिक निखार | Birth and initial enhancement

सरलीकृत मूर्त-अमूर्त चित्र फलक व ज्यामितीय रूपाकारों के लिये प्रसिद्ध (स्वर्गीय) मोहन शर्मा राजस्थान के उन अग्रणी चित्रकारों में से थे, जिन्होंने बड़ी अल्प आयु में राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर चित्र प्रदर्शित कर अपनी पहचान कायम की थी।

सन् 1942 ई. में ‘नाथद्वारा’ में जन्मे मोहन शर्मा को बाल्यकाल से ही चित्रकला के प्रति रुझान था और हो भी क्यों नहीं, परिवार का कलात्मक वातावरण जो उन्हें सदैव मिला। उनके पिता भी जाने-माने पारम्परिक कलाकार जो थे प्राथमिक शिक्षा पूर्ण होने पर उन्होंने विज्ञान विषय लेकर पढ़ाई शुरू की, किन्तु कुछ कारणवश उन्हें पढ़ाई छोड़नी पड़ी।

इसके पश्चात् उनके बड़े भाई ने ‘सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स’, मुम्बई में मोहन शर्मा का दाखिला कराया। यहाँ पहुँच कर मोहन शर्मा को आत्मसन्तुष्टि का अनुभव हुआ कि सही स्थान पर एवं सही दिशा में कार्य सीखने पहुँच गये हैं।

कला महाविद्यालय में उन्होंने अत्यन्त उत्साह एवं लगन से अध्यापन किया। इनकी कला प्रतिभा का ही फल था कि इनके गुरुजनों ने इन्हें प्रोत्साहित ही नहीं किया, अपितु सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स के प्राचार्य ‘श्री पलसीकर’ ने उनका परिचय ‘एफ.एन. सूजा’ से कराया।

सूजा के सान्निध्य में रहकर मोहन शर्मा आधुनिक कला के विभिन्न आयामों से परिचित हुये। उन्होंने सूज़ा को चित्र सृजन में भी सहायता की। ये चित्र ‘सूज़ा कलम’ के नाम से प्रदर्शित हुये थे।

सन् 1965 ई. में मुम्बई से प्रथम श्रेणी में ‘डिप्लोमा’ हासिल करने के पश्चात् आपने ‘राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स से डिप्लोमा’ व ‘पेन्टिंग में जी.डी. आर्ट’ जैसी शैक्षणिक योग्यता भी हासिल कर ली। सन् 1968 से 1988 ई. तक राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट्स में शिक्षण कार्य किया।

संयोजन व चित्रण शैली का प्रभाव: सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स, मुम्बई के शिक्षण से इन्हें ‘पलसीकर ढोण्ड’ जैसे कला गुरुओं से चित्र, पोर्ट्रेट व दृश्य चित्रण की तकनीकी कुशलताओं को गहराई से अध्ययन करने का मौका मिला। इस प्रकार राजस्थानी पारम्परिक लघु चित्र शैली की कलम व जे. जे. स्कूल की पृष्ठभूमि ने इन्हें चित्रण करने का एक दृढ़ आधार दिया।

सन् 1967 ई. में ‘हिज होलिनेस’ नाथद्वारा के ‘लाइफ पोर्ट्रेट’ के कमीशन ने इन्हें और अधिक ख्याति दिलाई। महात्मा गांधी, पंडित नेहरू, सरदार पटेल, डॉ. राधाकृष्ण, लाल बहादुर शास्त्री, अब्राहम लिंकन इत्यादि विभूतियों के अनेक ‘पोर्ट्रेट’ एवं ‘लाइफ पोर्ट्रेट’ बनाये।

सन् 1968 ई. में मोहन शर्मा ने जयपुर के ‘राजस्थान स्कूल ऑफ आर्ट’ में ‘प्राध्यापक का पद संभाला और बीस वर्ष सन् 1988 ई. तक वहाँ शिक्षक रहते हुये समर्पित भाव से सृजनरत रहे व साथ ही विद्यार्थियों की सृजनात्मक कुशलताओं को विकसित करने के लिए प्रेरित किया।

मोहन शर्मा के चित्र प्रकृति व काल्पनिक रूपाकारों से बुने हैं, जो आयताकार, गोलाकार, त्रिकोणात्मक व अन्य ज्यामितीय आकारों के इन्द्रधनुषी रंगों द्वारा बिम्बों के आकर्षक संसार में ले जाते हैं।

प्रारम्भ में इनके चित्र संयोजनों में मानव से ज्यादा मानव रचित वस्तुओं का अधिक समावेश था। दरवाजे, पुल, दीवारों, खिड़कियाँ, गलियाँ, टेबिल पर रखी विविध सामग्री, जैसे-पुस्तक, फल, पुष्प, बर्तन, जिसे इन्होने सुन्दर छाया प्रकाश दिखाकर वास्तविक रंगों के प्रभाव द्वारा निखारा।

इसके पश्चात् आपने ‘मुम्बई की भव्य इमारतें’, ‘छोटी-बड़ी गलियाँ’, ‘जयपुर का जन्तर-मन्तर’, ‘ऐतिहासिक इमारतें’, ‘चौड़ी सड़कें’, ‘स्टिल लाइफ’ आदि को ज्यामितीय छोटे-बड़े आकारों में बनाया।

मोहन शर्मा- ‘स्टिल लाइफ’ सन् 1975-76 ई. में ब्रिटिश छात्रवृत्ति से लंदन प्रवास के दौरान बनाये चित्रों में स्टिल लाइफ, हाऊस ऑफ पार्लियामेन्ट, रिफ्लेक्शन आदि चित्रों से प्रकाश युक्त रूपाकार, जिनमें सफेद के साथ लाल, नारंगी रंग लिये चित्र और अधिक विविधता दर्शाते हैं।

मोहन शर्मा का लंदन में बिताया समय चरमोत्कर्ष का था। सन् 1972 के आसपास इन्होने अपने चित्रों में ‘फ्लैट नाइफ द्वारा मोटे रंगों की परतों का प्रयोग’ आरम्भ किया था, जो गहरे रंग की आकृतियों के माध्यम से प्रकाशित होती उभरती है, परन्तु यह प्रयोग ज्यादा दिन नहीं चला और वे पुनः तेल व एक्रेलिक माध्यम से पारदर्शी रंगांकन में लौट आये, जिसका प्रयोग अन्त तक करते रहे।

भारत आने के पश्चात् सन् 1985-86 ई. में बनाई ‘डेजर्ट शृंखला’ में भी प्रकाशयुक्त ज्यामितीय रूपाकार ही थे। इसके अलावा मोहन शर्मा ने स्याही व पैन से सैकड़ों छोटे-बड़े रेखांकन बनाये, जो अलग अस्तित्व रखते हैं।

सामूहिक एकल प्रदर्शनियाँ व पुरस्कार |Collective Solo Exhibitions and Awards

मोहन शर्मा ने अपने चित्रों का प्रदर्शन किया, जिसमें सन् 1976 ई. में ‘टी सेन्टर लंदन’ में ‘इंटीरियर शृंखला’, 1986 में ‘आर्ट्स-38 गैलरी’, लंदन, 1976 में ‘ब्रिटिश कौंसिल’, लंदन, ‘राष्ट्रीय प्रदर्शनी आइफेक्स’, दिल्ली, 1985 में ‘ग्रे आर्ट गैलरी’, न्यूयार्क, ‘द्वितीय एशियन आर्ट शो’, ‘फूं-फूं’, जापान आदि अन्य स्थानों पर एकल व सामूहिक प्रदर्शनियों में भाग लिया।

मोहन शर्मा को अपने उत्कृष्ट कार्य के लिए पूरा-पूरा सम्मान मिला। सन् 1965 ई. में डोली कर्सटजी पुरस्कार, सन् 1965 ई. में महाराष्ट्र राज्य छात्र पुरस्कार, सन् 1966, 1974, 1975, 1981, 1984 ई. में राजस्थान ललित कला अकादमी का वार्षिक पुरस्कार व 1972 में राष्ट्रीय कला अकादमी से पुरस्कार मिला, 1973 में आईफैक्स, 1977 में टीचर्स डे प्रदर्शनी, 1988 में आपको राजस्थान ललित कला अकादमी का सर्वोच्च ‘कलाविद्’ सम्मान से सम्मानित किया।

सन् 1975-76 ई. में ब्रिटिश कौंसिल छात्रवृत्ति, जो ‘मिडिल सैक्स पॉलिटेकनीक’, लंदन से प्राप्त हुई।

विशिष्ट कार्य |Specific Work


मोहन शर्मा ने अपने जीवन में जो विशिष्ट कार्य किये, उनमें प्रमुख रूप से सन् 1967 ई. में ‘लाइफ साइज पोर्ट्रेट’, ‘हिज हाईनेस’, ‘नाथद्वारा म्यूरल’, ‘राजस्थान पैवेलियन एशिया’, 72, दिल्ली हैं।

मोहन शर्मा ने देश-विदेश के सेमिनार व आर्ट कान्फ्रेंस में भाग लेकर पत्र वाचक के रूप में सक्रिय भूमिका निभाई, सन् 1973 ई. में ‘सिम्बोलिज्म इन कन्टेम्परेरी आर्ट’ (Symbolism in Contemporary Art), राज्य ललित कला अकादमी द्वारा ‘अखिल भारतीय सेमिनार’, सन् 1976 ई. में आर्ट एण्ड एजूकेशन, मिडिलएक्स’ (Art and Education), सन् 1985 ई. में प्रॉब्लम ऑफ मीनिंग आर्ट लेंगुएज’ (Problem of Meaning and Art Language), ‘एसेंबली ऑफ वर्ल्ड रिलीजन, न्यूजर्सी’, 1985, यू.एस.ए.।

मोहन शर्मा ‘प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप’, राजस्थान के संस्थापक सदस्य व अध्यक्ष रहे है, साथ ही राज्य ललित कला अकादमी की कार्यकारिणी के भी सक्रिय सदस्य रहे हैं।

मृत्यु | Death


बीमारी से जूझते हुये मोहन शर्मा का शरीर 25 जून, सन् 1988 ई. को दिवंगत हुआ, लेकिन आपको आत्मा आपके बनाये चित्रों में रच-बस गई।

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