राजस्थान के कला जगत् में श्री रत्नाकर विनायक साखलकर का विभिन् स्थान है। साखलकर ने कला शिक्षक के रूप में विशेष ख्याति अर्जित की है।
जन्म एवं शिक्षा
साखलकर का जन्म महाराष्ट्र के रत्नागिरी नामक स्थान पर 28 फरवरी, सन् 1918 ई. को हुआ। बाल्यकाल मुम्बई के छोटे से गाँव अलीबाग में बीता और वहीं पर आपने प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। यूँ भी उच्च शिक्षा लिए पारिवारिक परिवेश में आप पले-बढ़े। आपने बी.एससी. की परीक्षा पास करने के उपरान्त कानून की पढ़ाई की और फिर इसके विशेषज्ञ बने, पर कला के प्रति अगाध गाँव मे उन्हें कला की विशेष उच्च शिक्षा प्राप्त करने सर जे. जे. स्कूल ऑफ आर्ट्स में पहुंचा दिया, जहाँ से आपने ‘जी. डी. आर्ट्स’ व ‘मास्टर ऑफ आर्ट्स’ की उपाधियाँ प्राप्त की। सन् 1953 ई. में आपने एम.एड. की उपाधि ली। इसके पश्चात् अजमेर में दयानंद सरस्वती कॉलेज में चित्रकला के प्राध्यापक, फिर विभागाध्यक्ष रहते हुए, सेवानिवृत्ति तक कार्यरत रहे। सफल शिक्षक के रूप में आप राजस्थान विश्वविद्यालय के स्नातकोता पाठ्यक्रम निर्धारित करने में प्रेरणास्रोत रहे। यहीं पर बोर्ड ऑफ स्टडीज के कन्या एकेडमिक कॉउंसिल के सदस्य भी रहे।
कला यात्रा
श्री साखलकर की कला यात्रा का प्रारम्भ किसी के मार्गदर्शन से या प्रोत्साहन से नहीं हुआ। जब साखलकर प्राथमिक विद्यालय में पढ़ रहे थे, तभी से उनका रुझान कला में था। वे पेंसिल से कागज पर हनुमानजी व शिवाजी की तस्वीरें बनाकर अपने सहपाठियों को बाँट देते, जिसकी एवज में उनसे पेंसिल, स्लेट ले लेते थे। पुणे स्कूल की वार्षिक कला प्रदर्शनी में साखलकर के द्वारा बनाये चित्र पर प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ, जो उनके जीवन का प्रथम पुरस्कार था, तभी से साखलकर ने दृढ़ निश्चय किया कि वे चित्रकला का अभ्यास निरंतर जारी रखेंगे।
चित्रकला में पढ़ाई पूर्ण करने के उपरान्त साखलकर ने रचनात्मक या बनवादी शैली के चित्र बनाये, किन्तु इससे जब उन्हें संतुष्टि नहीं मिली, तो मानवीय जीवन के भाव पक्ष को उजागर करने के लिए उन्होंने अभिव्यंजनावादी शैली में चित्र बनाये। अमूर्त संयोजन के साथ-साथ साखलकर ने व्यक्ति चित्रण का भी कार्य जारी रखा। अपनी रचनात्मकता के विषय में साखलकर ने कहा है, ‘‘मुझ से अपना चित्र तब तक पूरा नहीं होता, जब तक उसमें अपने जीवन का कोई अनुभव प्रतिबिम्बित न हो। अतः मेरे काल्पनिक से काल्पनिक व अमूर्त चित्र भी मेरे जीवन से संबंध रखते हैं।” आपके प्रमुख चित्रों में ‘दृश्यचित्र’, ‘भीर का सौन्दर्य’, ‘ग्रामीण जीवन’, ‘बारादरी’, ‘प्रसाधन’, ‘नशा’, ‘सौहार्द्र’, ‘जीवन’ है।
पुरस्कार
श्री साखलकर की कला जगत् में एक शिक्षक, दार्शनिक, चित्रकार एवं कला लेखक के रूप में महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। साखलकर केन्द्रीय ललित कला अकादमी,दिल्ली में राजस्थान के चित्रकारों के प्रतिनिधि के रूप में सर्वप्रथम सदस्य रहे तथा मुम्बई आर्ट सोसायटी एवं महाराष्ट्र चित्रकार मंडल द्वारा पुरस्कृत व सम्मानित हुये।
राजस्थान ललित कला अकादमी से वर्ष 1961 व 1962 की चतुर्थ व पंचम् वार्षिक कला प्रदर्शनी में अपने उत्कृष्ट चित्रों के लिए पुरस्कृत हो चुके
सन् 1989 ई. में राजस्थान के कला क्षेत्र में आपकी विशिष्ट उपलब्धियों का समादर करते हुए ‘कलाविद्’ (फैलोशिप) की उपाधि से सम्मानित किया। साथ डॉ. शब्बीर हसन काजी द्वारा लिखित मोनोग्राफ राज्य ललित कला अकादमी से प्रकाशित हुआ।
लेखन
साखलकर ने कला विद्यार्थियों के लिए कला पुस्तकों का लेखन किया, जिसमें प्रमुख रूप से ‘आधुनिक चित्रकला का इतिहास’, ‘यूरोपीय चित्रकला का इतिहास’ व ‘कला कोश’ प्रमुख हैं। कला विद्यार्थी एवं शोधकर्ता सदैव इनसे लाभान्वित होते रहेंगे। हिन्दी, मराठी एवं आंग्ल पत्र-पत्रिकाओं में भी आपने कला समीक्षक के रूप में विशेष ख्याति अर्जित की है।
दयानन्द कॉलेज, अजमेर में करीब तीन दशकों तक शिक्षण कार्य पूर्ण कर सेवानिवृत्त होने के पश्चात् स्वाध्याय, लेखन, मनन और चिंतन में व्यस्त हैं।