रसिक दुर्गाशंकर रावल का जन्म सौराष्ट्र में सारडोई में 21 अगस्त 1928 ई. को हुआ था। उनका शैशव साबरकांठा में बीता और कला की शिक्षा सर जे० जे० स्कूल ऑफ आर्ट बम्बई में हुई। उन्होंने भित्ति चित्रण में छात्रवृत्ति भी प्राप्त की ।
श्री रावल के चित्रों में रेखा लावण्य तथा परम्परागत कला की गीतिमय अनुभूति का काल्पनिक डिजाइनों एवं रंगों के साथ समन्वय हुआ है जो आधुनिक कला की विशेषताएँ हैं।
उनकी आरम्भिक कला पर लोक-संस्कृति का प्रभाव पडा अतः सौराष्ट्र की लोक अलंकरण शैली की झलक उनके चित्रों में रपष्ट मिलती है। सन् 1951 में अकित ग्वाले (Cowherds) नामक चित्र उस समय के प्रसिद्ध उदाहरणों में से एक है।
गहरे रंगों की आधुनिक योजना, अत्यन्त महीन और सशक्त प्रवाहपूर्ण रेखांकन, लोक शैली से प्रभावित अलंकृत रूप योजना तथा ग्रामीण विषय इस चित्र तथा इसी युग के अन्य चित्रों की विशेषताएँ हैं। इनमें रंग भरने के उपरान्त महीन श्वेत रेखा से आकृतियों के विवरणों तथा सीमाओं का अंकन किया गया है।
किन्तु इसके पश्चात् उन्होंने जो प्रयोग किये हैं उनसे उनकी अलग पहचान बन गयी है। आकृतियों का लम्बापन और उनमें अमूर्तता का समन्वय उन्हें भारत के अन्य समस्त कलाकारों से प्राचीन आदिम परम्परा की ओर ले जाता है। यह परम्परा ग्रामीण अंचल के लोक-कलाकारों से भी प्राचीन है और प्रागैतिहासिक युग से सम्बन्धित है।
अत्यन्त बारीक और प्राणवान् सीमा रेखाओं में आबद्ध उनकी सीधी खड़ी किन्तु सजीव आकृतियाँ शालीन किन्तु विकृतिपूर्ण हैं और कृत्रिम होते हुए भी शानदार हैं।
ये हमें गुहावासी मनुष्य की आदिम कला तक ले जाती हैं। इनमें जिस प्राकृतिक भव्यता और गुहावासी मनुष्य के जीवनका एक हल्का सा संकेत है, उसे अब पुनः सर्जित नहीं किया जा सकता, किन्तु रावल ने अपनी प्रेरणा वहीं से ली है।
उनकी यह विशेषता है कि इन रूपों में किसी की भी अनुकृति उन्होंने नहीं की है, न कोई उनका अनुकर्त्ता है। उनकी शैली पूर्णतः व्यक्तिगत और अकृत्रिम है।
इसके उपरान्त रावल मानवाकृति के स्थान पर कागज की कटी हुई आकृतियों के समान अत्यन्त सरल रूपाकारों पर आश्रित लम्बे आकार वाले पक्षियों तथा वनस्पति की आकृतियों, जिनकी सीमा रेखाएँ किसी अमूर्त भाव की ओर खींच ले जाती हैं, चित्रित करने लगे । उनकी एक खास पहचान बारीक श्वेत सीमा रेखा है जो उनके अधिकांश चित्रों में मिलती है।
उन्होंने बम्बई आर्ट सोसाइटी का पुरस्कार 1952 में प्राप्त किया था अपने चित्रों की प्रथम एकल प्रदर्शनी उन्होंने 1954 में आयोजित की। 1955 में उन्हें ललित कला अकादमी नई दिल्ली का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। तब से वे निरन्तर प्रदर्शनियों आयोजित कर रहे हैं और उन्हें अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए हैं।
आजकल वे अमूर्त शैली के समान चित्र बना रहे हैं। विदेशों में कनेक्टीकट में उन्होंने 1967 में अपने चित्रों की प्रदर्शनी की थी। उनका उल्लेख अनेक ग्रन्थों में हुआ है और उन्होंने कई अन्तर्राष्ट्रीय कलाकोषों के सम्पादन में सहयोग दिया है।
रसिक डी० रावल के चित्र
- Rasik Durgashankar Raval

- Rasik Durgashankar Raval, My Pet

- Rasik Durgashankar Raval, painting

- Ravi Shankar Raval, Indian, Birds Collage

- Rasik Durgashankar Raval, Portrait of a Woman

- Rasik Durgashankar Raval, Woman with White Flower, 1960

- Rasik Durgashankar Raval, Standing Woman, 1959
