शारदाचरण उकील (1891 1940) Sharadacharan Ukil  

श्री उकील का जन्म बिक्रमपुर (अब बांगला देश) में हुआ था। आप अवनीन्द्रनाथ ठाकुर के प्रमुख शिष्यों में से थे। आपका परिवार बंगाल का एक कला दक्ष परिवार था। इसमें तीन भाई थे। 

बड़े शारदाचरण विख्यात चित्रकार और एक नवीन शैली के प्रणेता हुए। अवनी बाबू से शिक्षा प्राप्त कर आप दिल्ली आये और यहाँ कला के प्रचार के लिए एक कला विद्यालय “उकील स्कूल आफ आर्ट” का आरम्भ किया। 

भारत विभाजन के कारण पंजाब से कुछ कलाकारों के दिल्ली आगमन के पूर्व तक दिल्ली के कला-जगत की गतिविधियों में उकील परिवार का बहुत योग रहता था। 

आप जब दिल्ली आये थे तब यहाँ मुगल शैली का ही प्रचार था। आपने यहाँ ठाकुर शैली का प्रचार किया साथ ही उसमें अपनी एक मौलिक शैली भी विकसित की जिसके अनेक अनुयायी हुए। आपकी सारे संसार में ख्याति हुई।

शारदाचरण उकील की कला में ठाकुर शैली के अतिरिक्त मुगल तथा ईरानी शैलियों की भी छाप है। 

आपके चित्र काल्पनिक जगत् की कृतियाँ हैं जिनमें भावपूर्ण मुद्राएँ तथा रेखांकन दर्शनीय है। 

प्रायः ऐतिहासिक तथा पाराणिक विषयों का चित्रण आपको प्रिय है जिसमें कृष्ण तथा बुद्ध को प्रधानता दी गयी है। इनका आपने अनेक स्थितियों तथा मनः स्थितियों में अंकन किया है। 

रास लीला के चित्रण में शारदा उकील ने रास नृत्य की गति को प्रमुखता न देकर उसकी चरम स्थिति आत्मानन्द एवं रहस्यात्मक अनुभव को ही व्यक्त करने का प्रयत्न किया है। 

आपके युद्ध-जीवन के चित्र अत्यन्त प्रभावशाली है और उनका प्रभाव नन्द बाबू के शिव के चित्रों के ही समकक्ष अनुभव किया गया है। 

आपने भगवान बुद्ध के जीवन से सम्बन्धित चित्रों की जो वृहत श्रंखला बनायी थी उसके कारण आपकी चित्रशाला एक बौद्ध विहार-सी प्रतीत होती थी। 

आपने रेशम पर भी अनेक चित्र बनाये सामाजिक यथार्थ जैसे गरीबी, बुढापा तथा दुःख आदि का भी आपने, मार्मिक चित्रण किया है।

शारदा उकील के चित्रों में एक संगीतात्मक माधुर्य है उनमें यद्यपि शरीर-रचना सम्बन्धी त्रुटियाँ भी हैं पर आपने लय, रंगों तथा भाव-व्यंजना पर अधिक ध्यान दिया है पृष्ठभूमि को गौण रखा गया है रंगों को कोमल वाश की भाँति प्रयुक्त किया गया है जो क्रमशः हल्के या गहरे होते चले गये हैं। 

अधिक रंगों का प्रयोग न करके दो . या तीन रंगों से ही चित्र पूर्ण किये गये हैं जो नेत्रों को सुख प्रदान करते हैं। आपकी कृतियों में रवीन्द्रनाथ ठाकुर के गीतिकाव्य के समान भावुकता है। 

आपकी नारी आकृतियाँ किसी स्वप्न-लोक की सृष्टि प्रतीत होती हैं वे अत्यन्त कोमल, नाजुक और वृक्ष से लगी किसी लता की भाँति लगती हैं जटायु की मृत्यु, राधा-कृष्ण, वंशीवादक गोपाल, ईद का चाँद आदि आपके प्रसिद्ध चित्रों में से हैं आपके चित्र दिल्ली, बीकानेर तथा पटियाला के व्यक्तिगत एवं कई राजकीय संग्रहों में है।

तूलिका के साथ-साथ आपने लेखनी भी उठाई थी और दिल्ली में “रूपलेखा” नामक पत्रिका का प्रकाशन आरम्भ किया जो अब आल इण्डिया फाइन आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स सोसाइटी नई दिल्ली के द्वारा प्रकाशित की जा रही है। 

आपके मझले भाई बरदा उकील इस सोसाइटी के व्यवस्थापक तथा इस पत्रिका के सम्पादक बने। तीसरे भाई रानोदा ने लन्दन के इण्डिया हाउस में भित्ति चित्रण किया जिससे वे एक भित्ति चित्रकार के रूप में विख्यात हुए। 

आपके परिवार की महिलाएँ भी कुशल कलाकार थीं। आपने दिल्ली में कला-केन्द्र की स्थापना कर एक महत्वपूर्ण कार्य किया जिसने अनेक सुप्रसिद्ध कलाकारों को जन्म दिया।

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