आधुनिक कला में माध्यमों तथा रचना सामग्री की दृष्टि से भी बहुत विविधता है। जल, टेम्परा, वाश, तैल, पेण्टल आदि के अतिरिक्त विभिन्न वस्तुओं को चिपका कर कोलाज बनाये जा रहे हैं।
कहीं-कहीं बहुत गाढ़ा रंग थोपा जा रहा है। प्लास्टर, मिट्टी, मोम, लुगदी आदि से आकृतियों को उभार देकर रंगा जा रहा है। थर्मोकोल पर भी उभारदार चित्र बनाये जा रहे हैं।
लकड़ी के धरातल पर विविध प्रकार की धातुओं, प्लास्टिक के टुकडों तथा टेराकोटा टाइलों को लगाकर भी चित्र का रूप दिया जा रहा है।
धातुओं को पीटकर रिलीफ का प्रभाव उत्पन्न किया जा रहा है। इस प्रकार सामग्री प्रयोग की दृष्टि से आधुनिक भारतीय कला में कोई बँधी बँधाई परिपाटी नहीं रह गयी है।
जैराम पटेल लेमिनेटेड लकड़ी को स्थान-स्थान पर ब्लो-टार्च से जला कर चित्र बनाते हैं। सतीश गुजराल ने काष्ठ की पतली-लम्बी पट्टियों को जोड़कर चित्र तल बनाकर उसे जलाकर विशेष प्रकार के प्रभाव उत्पन्न करने की एक अन्य विधि भी विकसित की है।
वे इसे रासायनिक घोल से सुरक्षित करके रंग ही नहीं लगाते बल्कि इसे सुवर्ण-पत्रों आदि से भी अलंकृत करते हैं। हुसैन विभिन्न मोतियों तथा माणिक्यों आदि को चारों ओर किसी विशेष कलात्मक आकार में अलंकृत करते हैं।
रंगों के साथ-साथ केनवास पर धागे भी चिपकाये जा रहे हैं। कागज की लुगदी तथा रेशम के चिथड़ों से भी चित्र बनाये जा रहे हैं।
ग्राफिक माध्यमों में लिनो, बुडकट, ड्राई पाइण्ट, अम्लांकन, उत्कीर्णन, छापा तथा मेजोरिण्ट आदि विधियों के साथ-साथ बंधेज एवं बाटिक की रंगाई, लेस वर्क, टेपेस्ट्री आदि का मुक्त प्रयोग हो रहा है।
कला के तत्वों तथा सामग्री का महत्व बढ़ जाने से कलाकार नई-नई सामग्री के परीक्षण और प्रयोग की ओर प्रोत्साहित हुए हैं।
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