ललित मोहन सेन (1898-1954) | Lalit Mohan Sen

ललित मोहन सेन का जन्म 1898 में पश्चिमी बंगाल के नादिया जिले के शान्तिपुर नगर में हुआ था ग्यारह वर्ष की आयु में वे लखनऊ आये और क्वीन्स हाई स्कूल में प्रवेश लिया शान्तिपुर के अपने बचपन के रंग और वहाँ का वातावरण उन पर छाया हुआ था। 

लखनऊ के क्वीन्स हाई स्कूल में कुछ समय तक शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात् 1912 में उन्होंने गवर्नमेण्ट स्कूल ऑफ आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स में प्रवेश प्राप्त किया और 1917 में चित्रकला का डिप्लोमा प्राप्त किया। वे कला विद्यालय में प्रवेश लेने वाले सर्वप्रथम छात्र थे। उनकी प्रतिभा देखकर तत्कालीन प्रधानाचार्य श्री नेट हार्ड ने उन्हें कला-विद्यालय में ही शिक्षक बना दिया। 

इस प्रकार 1918 में उन्होंने कला-शिक्षक का भार सम्भालने के साथ-साथ क्रमशः सुपरिटेण्डेन्ट, ड्राइंग टीचर ट्रेनिंग कक्षाओं के सुपरिन्टेन्डिंग क्राफ्ट्समेन तथा अन्तिम दिनों में प्रधानाचार्य का पद सम्हालते हुए मृत्यु पर्यन्त कला जगत् की सेवा की।

1923-24 में ललित बाबू को रायल कालेज ऑफ आर्ट्स लन्दन में कला की उच्च शिक्षा ग्रहण करने के लिये छात्रवृत्ति प्रदान की गयी और 1926 में आपने वहाँ से चित्रकला तथा काष्ठ उत्कीर्णन में ए० आर० सी० ए० की डिग्री प्राप्त की। 1928 में उन्हें पुनः लन्दन में इण्डिया हाउस की दीवारों पर चित्रांकन का कार्य करने के लिये भेजा गया। 

वहाँ वे चार वर्ष रहे और इस अवधि में उन्होंने इंग्लैण्ड के कई प्रमुख कलाकारों से सम्बन्ध बना लिया। भारत वर्ष में भी उनके ठाकुर परिवार, अवनी बाबू के प्रमुख शिष्यों तथा अमृता शेरगिल आदि से अच्छे सम्बन्ध थे 1942 में श्री ललित मोहन को लखनऊ कला विद्यालय का अधीक्षक शिल्पकार नियुक्त किया गया। 

1945 में श्री असित कुमार हाल्दार के द्वारा प्रधानाचार्य पद से अवकाश ग्रहण करने के उपरान्त श्री सेन को प्रधानाचार्य नियुक्त किया गया जिस पद पर कार्य करते हुए 2 अक्टूबर 1954 को उनका आकस्मिक निधन हो गया।

श्री सेन कठोर परिश्रमी, नियमों का पालन करने वाले, सरल स्वभाव के तथा सच्चे व्यक्ति थे। वे एक श्रेष्ठ चित्रकार ही नहीं बल्कि एक उत्कृष्ट मूर्तिकार, प्रिन्टमेकर तथा कुशल फोटोग्राफर भी थे। तैल रंग, जल रंग, पेस्टल, इन्क, ग्वाश तथा टेम्परा आदि माध्यमों पर उन्हें आश्चर्यजनक अधिकार था। उनके चित्र बहुत बिखरे हुए है। 

एक कलाकार तथा कला शिक्षक के रूप में उनका योगदान केवल महत्वपूर्ण ही नहीं, आधुनिक भारतीय चित्रकला के विकास में एक सक्रिय भूमिका निभाने वाले का है। बी० एन० जिज्जा, ईश्वरदास, मदन लाल नागर, एच०एल० मेढ, रणवीर सिंह विष्ट आदि उनके शिष्य भी भारतीय कला के सुप्रसिद्ध नाम हैं श्री सेन ने यूरोपीय अकादमी पद्धति का प्रभाववादी तथा भारतीय रेखात्मक-सभी प्रकार का कार्य किया है। 

श्री सेन के चित्रों में ग्राम बालिकाओं का विशेष स्थान है। पेस्टल तथा क्रेयन में वे उनकी मुखाकृतियाँ बनाने में सिद्धहस्त थे।

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