रामगोपाल विजयवर्गीय (1905 ) | Ramgopal Vijayvargiya 

पदमश्री रामगोपाल विजयवर्गीय जी का जन्म बालेर ( जिला सवाई माधोपुर) में सन् 1905 में हुआ था। आप महाराजा स्कूल आफ आर्ट जयपुर में श्री शैलेन्द्रनाथ दे के शिष्य रहे हैं। 1945 से 1966 तक आपने राजस्थान स्कूल आफ आर्ट्स में प्राचार्य के पद को भी सुशोभित किया है। 

1958 में आपको राजस्थान ललित कला अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया गया। 1969-70 में आपने अनेकों साहित्यिक कृतियों की भी रचना की जिन पर राजस्थान साहित्य अकादमी ने आपको पुरस्कृत किया । 1970 में राजस्थान ललित कला अकादमी द्वारा श्री विजयवर्गीय को ‘कलाविद्’ की उपाधि से सम्मानित किया गया तथा 1984 में भारत के भू० पू० राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह द्वारा ‘पदम् श्री’ से अलंकृत किया गया। 

1987-88 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा फैलोशिप प्रदान की गयी तथा 1988 में केन्द्रीय ललितकला अकादमी नई दिल्ली द्वारा “रत्न सदस्यता” प्रदान की गयी। भू० पू० प्रधानमंत्री श्री चन्द्रशेखर द्वारा फाइन आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट्स सोसाइटी नई दिल्ली की 63 वीं वार्षिक कला-प्रदर्शनी के अवसर पर आपको कला रत्न की उपाधि से सम्मानित किया गया । 

सन् 1992 में भारत के तत्कालीन उप-राष्ट्रपति डा० शंकर दयाल शर्मा द्वारा आपके सम्मान में रूपांकन” अभिनन्दन ग्रंथ का लोकार्पण किया गया। आप एक ख्याति प्राप्त चित्रकार है। आपने राजस्थानी जनजीवन, धार्मिक, पौराणिक एवं प्राचीन विषयों का चित्रण किया है तथा कुछ श्रृंगारपूर्ण चित्र भी बनाये हैं जिनमें अनावृत नारी-आकृति का मोहक चित्रण हुआ है।

आप जल रंगों तथा वाश तकनीक के बंगाल शैली के कुशल चित्रकार हैं। आपका चित्रण हृदयग्राही होता है। सभी चित्रों में नारी की अत्यन्त आकर्षक छवि का अंकन हुआ है। आपके चित्रों में रेखा प्रवाह तथा कोमल रंग योजना का अद्वितीय निर्वाह हुआ है। 

आपने नीले रंग के जैसे मृदु प्रभावों का प्रदर्शन किया है वैसा अन्यत्र दुर्लभ है ! 1936 से ही आपने कलकत्ता, लखनऊ, जयपुर शिमला तथा बनारस आदि में अपने चित्रों का प्रदर्शन आरम्भ कर दिया था। आपके चित्र अनेक संग्रहों में है। कला के पुनर्जागरण तथा नवीनीकरण में जो स्थान राजा रवि वर्मा तथा अवनीन्द्रनाथ ठाकुर का माना गया है, राजस्थान के सन्दर्भ में वही स्थान विजयवर्गीय जी का है। 

आपकी शैली ही विजयवर्गीय शैली के नाम से प्रसिद्ध है। मेघदूत और गीत गोविन्द के प्राणवान चित्रकार के रूप में अपने सृजन द्वारा जन मानस को रस-सिक्त करने का श्रेय विजयवर्गीय जी को दिया जाता है आप छायावादी शैली के कवि भी रहे हैं। आप रत्नों के भी कुशल पारखी हैं ।

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