ADA ZAFRI GHAZAL
अदा’ ज़ाफ़री ग़ज़ल आलम ही और था जो शनासाइयों में था जो दीप था निगाह की परछाइयों में था वो बे-पनाह ख़ौफ़ जो तन्हाइयों में था दिल की तमाम अंजुमन-आराइयों …
अदा’ ज़ाफ़री ग़ज़ल आलम ही और था जो शनासाइयों में था जो दीप था निगाह की परछाइयों में था वो बे-पनाह ख़ौफ़ जो तन्हाइयों में था दिल की तमाम अंजुमन-आराइयों …