कथकलि आदि लोक-नृत्यों, खिलौनों, अपभ्रंश पुस्तक-चित्रों, तथा मन्दिरों की कला के अनेक विषय प्राचीन कथानकों से सम्बन्धित हैं अतः आधुनिक कलाकारों ने प्राचीन मिथकों को आधुनिक सन्दर्भों में प्रयुक्त किया है।
आधुनिक भारतीय कला में मिथक चेतना उत्तरोत्तर रूपान्तरित होती गयी है। सभी कलाकारों ने मिथकों का उपयोग नहीं किया है।
पौराणिक मिथकों में गणेश मंगल के और दुर्गा शक्ति की प्रतीक है। अन्य देवी-देवताओं जैसे सरस्वती, इन्द्र, हनुमान आदि का भी चित्रकारों ने प्रसंगानुसार अपनी रचनाओं में प्रयोग किया है। संहारक के रूप में शिव का भी अंकन हुआ है।
अश्व, वृषभ, गरुड, सिंह, जटायु कपोत, मयूर एवं अन्य पक्षी आदि नियक नये युग की आवश्यकतानुरूप व्याख्या के साथ प्रयुक्त किये गये हैं।
कृष्णाख्यान, रामायण तथा महाभारत के प्रसंगों का भी आधुनिक कलाकार नये अर्थों में चित्रण कर रहे हैं। नये तकनीक भी प्रयुक्त किये जा रहे हैं।
रामायण, महाभारत तथा भागवत के आधार पर नये दृष्टिकोण से चित्र बनाये जा रहे हैं। हुसैन का भीष्न की शर-शैय्या, शैल चोयल का जरासन्धवध एवं अर्जुन जाना का गोवर्धन-धारण इस दृष्टि से उल्लेखनीय चित्र हैं।
माधव घोष ने द्यूत में हारे पांडवों को क्रूसीकृत चित्रित किया है। पी० जयरामन ने पूतना वध का चित्रण वडे ही अद्भुत तरीके से किया है।
सृष्टि के आरम्भ में सागर के आलोड़न से उत्पन्न विष, (समुद्र मन्थन से उत्पन्न विष) को शिव द्वारा पी जाने और पूतना के विष को कृष्ण द्वारा पी जाने के पौराणिक मिथकों का समन्वय करने वाले इस चित्र स्तन के में अन्धकार से घिरे जल में विशाल गुब्बारों की भाँति उठे पूतना के स्तन इतने फूल गये हैं कि ये फटने ही वाले हैं उनमें आन्तरिक उद्वेग की कम्पन युक्त लहरें तथा विष चूसते हुए बालकृष्ण का अत्यन्त प्रभावपूर्ण अंकन है ।
आधुनिक कला में धार्मिक प्रवृत्ति अभी भी विद्यमान है। रंगास्वामी सांरगन तथा रेडप्पा नायडू आज भी गरूड़, विष्णु, रावण का कैलास उठाना आदि विषयों का अंकन करते हैं।
मधु गुप्ता ने कृष्ण के श्रृंगारिक पक्ष के साथ-साथ गीता के गम्भीर पक्ष को भी लिया है।
कला को किसी-न-किसी मिथक की आवश्यकता होती है यूरोप की कला शताब्दियों तक ईसा के मिथक पर आधारित रही।
भारतीय कला भी प्राचीन युगों में जैन, बौद्ध, शैव तथा वैष्णव मिथकों से अनुप्राणित होकर महान् और अद्भुत रूपों को जन्म दे सकी।
किन्तु आज मिथक-विश्वास समाप्त होते जा रहे हैं। पुराने मिथकों में यंत्र-युग की समस्याएँ प्रस्तुत नहीं की जा सकतीं। सम्भवतः आज की आवश्यकता के अनुरूप नये मिथकों को जन्म लेना होगा।