सुरेश शर्मा का जन्म एवं शिक्षा
राजस्थान की समसामयिक कला आन्दोलन में उदयपुर के सुरेश शर्मा का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। सुरेश शर्मा का जन्म सन् 1937 ई. में ‘कोटा’ के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। बचपन से ही इनको चित्रकला एवं मूर्तिकला में विशेष रुचि थी।
सुरेश शर्मा ने राजस्थान विश्वविद्यालय से चित्रकला विषय के साथ स्नातक उपाधि प्राप्त की। इसके पश्चात् शांतिनिकेतन में प्रसिद्ध कलाकार स्वर्गीय रामकिंकर बैज एवं स्वर्गीय विनोद बिहारी मुकर्जी के सान्निध्य में रहकर कला अध्ययन किया।
सन् 1962 ई. में विश्व भारती विश्वविद्यालय शांतिनिकेतन से ललित कला में डिप्लोमा अर्जित किया। सन् 1962 ई. में ‘राजकीय महाविद्यालय’, बूंदी और सन् 1973 ई.से उदयपुर विश्वविद्यालय में प्राध्यापक पद पर और सेवानिवृत्ति से पूर्व विभाग के विभागाध्यक्ष पद पर कार्यरत थे।
सन् 1969-1971 ई. के मध्य सुरेश शर्मा उच्च अध्ययन एवं कला के अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप को नजदीक से देखने हेतु अमेरिका की ‘बेकमेन स्कॉलरशिप’ पर ‘ब्रुकलिन म्यूजियम आर्ट स्कूल’ और प्रिन्ट मेकिंग कार्य सीखने हेतु ‘प्राद ग्राफिक इन्स्टीट्यूट’, न्यूयार्क गये।
सुरेश शर्मा की पेंटिंग | चित्रकर्म
सुरेश शर्मा ने अपने जीवन काल में बंध कर कार्य करना नहीं सीखा। वे सदैव नवीन प्रयोगों को सृजन कार्य के साथ जोड़ कर स्वतंत्र व्यक्तित्व एवं वैयक्तिक अभिव्यक्ति को महत्त्व देते हैं। आपने कला को मात्र आकस्मिक अध्ययन का विषय न मानकर अभिव्यक्ति में पूर्णता व प्रयोगवादी स्वरूप को स्वीकारा है।
सुरेश शर्मा का सृजन आकृति रहित अमूर्तता का है। इनका कला संसार साधारण भासित रूपों से परे एक स्वप्निल संसार है, जिसमें आकार व विस्तार दोनों का सामंजस्य आकाश की भव्यता के समान अनन्त है।
इनके फलक आकृति में बंधे रूप ही नहीं हैं, अपितु वे निराकार ब्रह्म के संवाहक की अनुभूति कराते हैं। विषय, ऋतु से परे, रंग पट्टिकाओं एवं रंगतों के स्वच्छन्द व धूमिल होते स्तर, कभी रंग पट्टिकाओं में तो कभी चौखानों में बंटे हुए दृष्टिगोचर होते हैं। इस प्रकार इनकी कलाकृतियाँ शुद्ध चाक्षुष आनन्द की वस्तु होकर दर्शक को नवीन आध्यात्मिक विश्व के दर्शन कराती हैं।
सुरेश शर्मा के चित्रों को मोटे रूप से अन्तरराष्ट्रीय कला आन्दोलनों कठोर किनार, मिनिमल आर्ट, आकार विहीन रंगवादी कलाकारों से जोड़ा जाता है। ‘रेड ऑन रेड’ आपकी उत्कृष्ट कृतियों में गिनी जाती है।
सुरेश शर्मा ने अपने चित्रों को इस प्रकार व्याख्यायित किया है, “मेरे चित्र कला नहीं, स्वयं कला है, यह वस्तुओं का चित्रण नहीं है, वरन् स्वयं प्रकृति है।”
इसी प्रकार शर्मा आगे कहते हैं कि “कलाकार स्वयं यह कभी नहीं कहता है कि मैं, यह वह आदि जानता हूँ, कला यह वह कुछ भी नहीं, कला तो शुद्ध रचना है।”
शर्मा की कृतियों में प्रिय रंगों में हरा, पीला, नारंगी, लाल एवं काला है, जो एक्रेलिक माध्यम के हैं। सेवानिवृत्ति के पश्चात् आज भी निरन्तर कार्यरत रहते हुये सुरेश शर्मा अपने खोजी एवं क्रियाशील रूप के कारण बहुत आगे निकल चुके हैं।
सुरेश शर्मा की उपलब्धियाँ एवं पुरस्कार
सुरेश शर्मा ने देश में आयोजित अनेक कला शिविरों में शिरकत की है। सन् 1982 ई. में मेक्समूलर भवन, कोलकाता द्वारा आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय कलाकार शिविर उनके लिये विशेष उपलब्धि का रहा है। इसी प्रकार शर्मा देश में आयोजित कई महत्त्वपूर्ण प्रदर्शनियों में निर्णायक के रूप में आमन्त्रित किये गये।
ललित कला के लिये समर्पित सेवाओं को ध्यान में रखते हुये राज्य सरकार ने राज्य ललित कला अकादमी के सदस्य के रूप में एवं पुनः उपाध्यक्ष पद पर भी सुरेश शर्मा को मनोनीत किया था। सन् 1985 ई. में राजस्थान के कला जगत् में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये अकादमी द्वारा ‘कलाविद्’ के रूप में सम्मानित किया गया। सुरेश शर्मा राजस्थान की कला संस्था ‘टखमण 28’ के संस्थापक सदस्य व चेयरमैन रह चुके हैं।
राजस्थान ललित कला अकादमी द्वारा तीन बार (सन् 1968, 1972 और 1985 ई.) श्रेष्ठ कृतियों के लिये पुरस्कृत सुरेश शर्मा को सन् 1977 ई. में राष्ट्रीय ललित कला अकादमी, नई दिल्ली द्वारा ‘कमन्ड्रेशन’ प्राप्त हुआ।
सुरेश शर्मा की कला प्रदर्शनियाँ
सुरेश शर्मा के चित्र अनेक राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय कला प्रदर्शनियों में चयनित व प्रदर्शित हो चुके हैं। इनके चित्रों की एकल एवं सामूहिक प्रदर्शनियाँ भी देश की महत्त्वपूर्ण कलादीर्घाओं में आयोजित हो चुकी हैं। शर्मा ने देश-विदेश की अनेक चित्रण एवं ग्राफिक कार्यशालाओं में भाग लिया है। इनकी कृतियाँ आज देश-विदेश के दर्जनों महत्त्वपूर्ण संग्रहों में संगृहीत हैं।