Ahmad Faraz Poetry

Ahmad faraz poetry अहमद फराज के शेर ज़िंदगी तेरी अता थी सो तिरे नाम की है

Ahmad faraz ये शहर मेरे लिए अजनबी न था लेकिन तुम्हारे साथ बदलती गईं फ़ज़ाएं भी

Ahmad faraz किस को बिकना था मगर ख़ुश हैं कि इस हीले से हो गईं अपने खरीदार से बातें क्या क्या

Ahmad faraz अब उसे लोग समझते हैं गिरफ़्तार मिरा सख़्त नादिम है मुझे दाम में लाने वाला

Ahmad faraz ये अब जो आग बना शहर शहर फैला है यही धुआं मिरे दीवार ओ दर से निकला था

Ahmad faraz न तेरा क़ुर्ब न बादा है क्या किया जाए फिर आज दुख भी ज्यादा है क्या किया जाए

Ahmad faraz कासिदा हम फक़ीर लोगों का इक ठिकाना नहीं कि तुझ से कहें

Ahmad faraz इक तो हम को अदब आदाब ने प्यासा रक्खा उस पे महफिल में सुराही ने भी गर्दिश नहीं की

Ahmad faraz जिंदगी तेरी अता थी सो तिरे नाम की है हम ने जैसे भी बसर की तिरा एहसां जानां