अहमद फ़राज़ के शेर | अहमद फ़राज़ की दर्द भरी शायरी
अहमद फ़राज़ के शेर अहमद फ़राज़ शायरी २ लाइन्स अहमद फ़राज़ की दर्द भरी शायरी अहमद फ़राज़ नज़्म Stories
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सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ऊनविंश पर जो प्रथम चरणतेरा वह जीवन-सिंधु-तरण;तनय, ली कर दृक्-पात तरुणजनक से जन्म की विदा अरुण! गीते मेरी, तज रूप-नामवर लिया अमर शाश्वत विरामपूरे कर शुचितर सपर्यायजीवन के अष्टादशाध्याय, चढ़ मृत्यु-तरणि पर तूर्ण-चरणकह—“पितः, पूर्ण आलोक वरणकरती हूँ मैं, यह नहीं मरण,‘सरोज’ का ज्योतिःशरण—तरण—अशब्द अधरों का, सुना, भाष,मैं कवि हूँ, पाया है प्रकाशमैंने…
आज पानी गिर रहा है, बहुत पानी गिर रहा है,रात-भर गिरता रहा है,प्राण मन घिरता रहा है,अब सवेरा हो गया है,कब सवेरा हो गया है,ठीक से मैंने न जाना,बहुत सोकर सिर्फ़ माना— क्योंकि बादल की अँधेरी,है अभी तक भी घनेरी,अभी तक चुपचाप है सब,रातवाली छाप है सब,गिर रहा पानी झरा-झर,हिल रहे पत्ते हरा-हर,बह रही है…
देवी प्रसाद मिश्र कहते हैं वे विपत्ति की तरह आएकहते हैं वे प्रदूषण की तरह फैलेवे व्याधि थे ब्राह्मण कहते थे वे मलेच्छ थे वे मुसलमान थे उन्होंने अपने घोड़े सिंधु में उतारेऔर पुकारते रहे हिंदू! हिंदू!! हिंदू!!! बड़ी जाति को उन्होंने बड़ा नाम दियानदी का नाम दिया वे हर गहरी और अविरल नदी कोपार…
आलोकधन्वा पुराने शहर की इस छत परपूरे चाँद की रातयाद आ रही है वर्षों पहले कीजंगल की एक रात जब चाँद के नीचेजंगल पुकार रहे थे जंगल कोऔर बारहसिंगेपीछे छूट गए बारहसिंगों कोनिर्जन मोड़ पर ऊँची झाड़ियों मेंओझल होते हुए क्या वे सब अभी तक बचे हुए हैंपीली मिट्टी के रास्ते और खरहेमहोगनी के घने…
आलोकधन्वा घर की ज़ंजीरेंकितना ज़्यादा दिखाई पड़ती हैंजब घर से कोई लड़की भागती है क्या उस रात की याद आ रही हैजो पुरानी फ़िल्मों में बार-बार आती थीजब भी कोई लड़की घर से भागती थी?बारिश से घिरे वे पत्थर के लैंप पोस्टसिर्फ़ आँखों की बेचैनी दिखाने भर उनकी रोशनी? और वे तमाम गाने रजतपर्दों पर…
कोई आतिश-दर-सुबू’ शो’ला-ब-जाम’ आ ही गया कोई आतिश-दर-सुबू’ शो’ला-ब-जाम’ आ ही गयाआफ़ताब आ ही गया, माहे- तमाम आ गया मोहतसिब’ ! साक़ी की चश्मे नीम-वा को क्याकरूँ मैकदे का दर खुला गर्दिश में जाम आ ही गया इक सितमगर तू कि वजहे-सद ख़राबीतेरा दर्द इक बलाकश” मैं कि तेरा दर्द काम आ ही गया हम-क़फ़स”…
कब वो सुनता है कहानी मेरी कब वो सुनता है कहानी मेरीऔर फिर वो भी ज़बानी मेरी ख़लिश-ए-ग़मज़ा-ए-खूंरेज़ न पूछदेख ख़ून्नाबा-फ़िशानी मेरीक्या बयां करके मेरा रोएंगे यारमगर आशुफ़ता-बयानी मेरीहूं ज़-ख़ुद रफ़ता-ए-बैदा-ए-ख़यालभूल जाना है निशानी मेरीमुतकाबिल है मुकाबिल मेरारुक गया देख रवानी मेरीकद्रे-संगे-सरे-रह रखता हूंसख़त-अरज़ां है गिरानी मेरीगरद-बाद-ए-रहे-बेताबी हूंसरसरे-शौक है बानी मेरीदहन उसका जो न मालूम…
शमशेर बहादुर सिंह आए भी वो गए भी वो ‘आए भी वो गए भी वो’–गीत है यह, गिला नहींहमने य’ कब कहा भला, हमसे कोई मिला नहीं। आपके एक ख़याल में मिलते रहे हम आपसेयह भी है एक सिलसिला गो कोई सिलसिला नहीं। गर्मे-सफ़र हैं आप तो हम भी हैं भीड़ में कहींअपना भी काफ़िला…
इक इक करके सबने ही मुंह मोड़ लियाइस दुनिया से अपना नाता तोड़ लिया जहाँ से लौट के आना भी है नामुमकिनऐसे जग से अपना रिश्ता जोड़ लिया जिस्म लगे बेजान मगर हम जीते हैँहम से सब ख़ुशियों ने रिश्ता तोड़ लिया पत्थर तो बदनाम बहुत है ज़ख्मो मेहमने तो शीशे से ही सर फोड़…
Read More “सिया सचदेव | ‘इक इक करके सबने ही मुंह मोड़ लिया” »