सोमनाथ होरे का जन्म चटगाँव (अब बांग्लादेश) में 1921 में हुआ था। वे बचपन से ही अत्यन्त प्रतिभाशाली छात्र थे और कला में उनकी विशेष रूचि थी। 1954 से 1958 तक वे इण्डियन कालेज ऑफ आर्ट एण्ड ड्राफ्ट्समैनशिप में शिक्षक भी रहे और साथ ही कलकत्ता महाविद्यालय से 1957 में कला की डिप्लोमा परीक्षा उत्तीर्ण की।
1958 से 1967 तक वे दिल्ली कला महाविद्यालय में ग्राफिक विभाग के प्रमुख तथा बड़ौदा कला महाविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर रहे। 1967 में वे कला-भवन, शान्ति निकेतन चले गये जहाँ उन्होंने पहले ग्राफिक विभाग का अध्यक्ष पद और बाद में कुछ वर्षों के लिये विश्व भारती विश्वविद्यालय शान्ति निकेतन के प्राचार्य का पद सम्भाला। 1983 तक वे वहाँ रहे ।
होरे ने अनेक प्रदर्शनियाँ की तथा उन्हें अनेक पुरस्कार प्राप्त हुए। 1960 की लुगानो द्वैवार्षिकी ग्राफिक प्रदर्शनी, 1962 तथा 1964 की टोक्यो छापा द्वैवार्षिकी प्रदर्शनी, 1962 की ही वेनिस ट्रैवार्षिकी, 1963 की साओ पाउलो द्वैवार्षिकी, 1974 की प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय ग्राफिक प्रदर्शनी नई दिल्ली के अतिरिक्त उनकी प्रदर्शनियाँ यूगोस्लाविया, पोलैण्ड, चेकोस्लोवाकिया, बुल्गारिया तथा मिस्र में भी आयोजित हो चुकी हैं।
1960, 62 तथा 63 में उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उनके चित्र देश-विदेश के अनेक संग्रहों में हैं। 1981 से वे ललित कला अकादमी नई दिल्ली के भी सदस्य रहे हैं।
होरे विचारधारा से साम्यवादी रहे हैं। उनकी कला पर बंगाल के दुर्भिक्ष का बहुत सशक्त प्रभाव पड़ा है। विनोद बिहारी मुखर्जी के सम्पर्क से भी उनमें एक नयी प्रेरणा जगी। ग्राफिक चित्रकार के रूप में होरे का अद्वितीय स्थान है। दिल्ली तथा बड़ौदा के अनेक ग्राफिक चित्रकार उनके शिष्य हैं और कई अन्य चित्रकार उनसे प्रेरित हुए है।