अजंता की विश्व प्रसिद्ध गुफाएं | चैत्य गुफा | बिहार गुफा
अजंता गुफा अजंता की विश्व प्रसिद्ध गुफाएं महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद जिले के केंद्र से 106 किलोमीटर की दूरी पर और मध्य रेलवे के जलगांव स्टेशन से लगभग 61 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है अजंता तीर्थ से 6 किलोमीटर पहले फर्दापुर ग्राम है जहां होकर दर्शकों को इन गुफा मंदिरों के दर्शन के लिए जाना पड़ता है विंध्य पर्वत माला के मंच पर उठते पहाड़ों के सिलसिले के अर्धचंद्राकार 72 मीटर ऊंची पहाड़ी सीधी खड़ी है.
जेम्स फर्गुसन ने 1819 में इन गुफाओं की यात्रा की.पॉइंट जेम्स फर्गुसन ने 1819 में इन गुफाओं की यात्रा की इन गुफाओं की खोज के 3 वर्ष बाद सर्वप्रथम इनकी चर्चा विलियम arskin ने 1822 में मुंबई लिटरेरी सोसाइटी के एलेग्जेंडर में इन गुफाओं का चाकसू विवरण तैयार किया जो 1819 मैं लंदन के कंजक्शन ट्रांजैक्शन ऑफ रॉयल एशियाटिक सोसाइटी में प्रकाशित हुआ.
यहां पर दो प्रकार की गुफाएं मिलती हैं चैत्य तथा विहार अधिकांश चित्र बिहार गुफाओं में हैं चित्र गुफाएं गुफाओं में कहीं-कहीं चित्र हैं चित्र गुफाएं प्रार्थना हेतु तथा बिहार गुफाएं बौद्ध भिक्षुओं के निवास हेतु बनाई गई हैं.
अजंता में कुल ₹30 हैं पहले 29 गुफाओं की एक श्रेणी थी लेकिन कुछ वर्ष पूर्व एक और गुफा का पता चला जिसकी क्रम संख्या 15 है क्योंकि यह गुफा 14 व संख्या 15 के मध्य स्थित है.
मात्र छह गुफाओं 12, 9, 10, 16, 17 में ही चित्र मिलते हैं अजंता की जुकाम में प्रथम सती से लेकर सातवीं शताब्दी तक कमा लगभग 700 वर्षों से अधिक कार्य हुआ अजंता की चित्रकला में शक सातवाहन चालुक्य वाकाटक कुषाण एवं गुप्त आदि विभिन्न संस्कृतियों बोलती हैं.
अजंता का सर्वश्रेष्ठ गुप्त काल में हुआ अजंता भारत का एक महान कलातीत है वहां चित्रकला मूर्ति कला एवं स्थापत्य कला तीनों का सुंदर समन्वय है इस कला को बौद्ध कला भी कहा जाता है क्योंकि इन गुफाओं का समस्त चित्रण वितान भगवान बुद्ध का की जीवन घटनाओं एवं जन्म जन्मांतर की कथाओं से संबोधित है जिन्हें जातक कथाएं कहा जाता है.
गुफा नंबर 1 विहार गुफा है इस गुफा की बाई दीवार पर पद्मपाणि बोधिसत्व का चित्र है जिसमें हाथ से कमल लिए हुए बोधिसत्व को विश्व चिंतन में लीन दर्शाया गया है इस गुफा का दूसरा चित्र मारने का है इसमें मध्य में निर्विकार भाव से भगवान बुद्ध बैठे हैं चारों और मार्गी सेनाओं में अनेक प्रकार के प्रलोभन देते हुए बनाई गई है.
इसके अतिरिक्त श्री जातक की कथा चित्र चित्र है चित्र राजा शिवि ने कबूतर के रूप में अग्निदेव रूप धारी अग्नि देव की उधारी बाज बाज रूपधारी धारी इंद्र से उसके प्राणों की रक्षा की थी और तराजू में एक पलड़े में कबूतर को रखकर उसके वजन से बराबर अपनी जगह का मांस कॉल कर बाज के सम्मुख प्रस्तुत किया था.
नंबर दो गुफा यह भी एक विहार गुफा है इस गुफा का सर्वाधिक प्रसिद्ध चित्र सर्वनाश है जिसमें बौद्ध भिक्षु का बाया हाथ थोड़ी थोड़ी थोड़ी चिंता की मुद्रा में है तथा हाथ की मुद्रा इस प्रकार है मानव सर्वनाश बानो सर्वनाश हो गया है बुद्ध जन्म के एक अन्य चित्र में माया देवी का अंकन है.
नवजात शिशु इंद्र की गोद में है इसके अतिरिक्त महावंश जातक विदुर पंडित जातक क्षमा याचना आदि हैं गुफा नंबर 9 यह एक सत्य गुफा है चैत्य जो भिक्षुओं द्वारा पूजा पाठ हेतु हेतु बनाई गई थी गुफा के बाहर की ओर भगवान की प्रतिमाएं उत्कीर्ण है इस गुफा में हीनयान और महायान दोनों मतों से संबंधित चित्र हैं
गुफा नंबर 10 यह भी एक चैत्य गुफा है यह गुफा सातवाहन काल में निर्मित हुई षड्यंत्र जातक षड्यंत्र दंत जातक प्रसिद्ध चित्र इस गुफा में कथा कथा तथा गुफा संख्या गुफा संख्या 17 में भी चित्र हाथियों की नई आत्मक लाया तो मत लयात्मक मुद्राओं का बड़ा ही भावपूर्ण चित्रण हुआ है दुकान की बाई दीवार पर राजा के जुलूस का चित्रण है जिसमें नागराज अपनी रानियों और दासियों दासियों 10 राशियों दास के साथ जा रहे हैं
श्याम जातक की कथा भी कथा का भी का श्याम जातक तथा का भी चित्र इसी गुफा में चित्रित है इस चित्र में अंधे माता पिता की सेवा करने वाले नवयुवक श्याम की कथा अंकित है बोधिसत्व का प्रसिद्ध चित्र भी इसी गुफा में है जिनका दाया हाथ कल्याण जिनका तथा बाया हाथ आशीर्वाद की मुद्रा में है गुफा नंबर 16 यह एक बिहार गुफा है यह सबसे ऊंची है गुफा के मध्य में बुद्ध की प्रलंब पाद मुद्रा निर्मित है
एक अन्य चित्र में बुद्ध के गृह त्याग से संबंधित चित्र है जिसमें रात्रि के समय यशोधरा और राहुल सो रहे हैं और बुध गृह त्याग कर रहे हैं सर्वश्रेष्ठ और विश्व प्रसिद्ध चित्र मरणासन्न राजकुमारी काशी गुफा में चित्रित है यह चित्र वातावरण करुणा ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति कर रहा है
गुफा नंबर 17 यह बिहार गुफा है इसमें सभी गुफाओं से अधिक चित्र बने हैं इस गुफा का प्रसिद्ध चित्र राहुल समर्पण का है जिसमें भगवान बुद्ध के बच्चा मांगने पर यशोधरा अपने इकलौते पुत्र को समर्पित करते हुए चित्रित किया गया है
अजंता की गुफाओं के अन्य चित्र चित्रों में नारी रूप सार्वभौमिक सौंदर्य का प्रतीक रूप है नारी आकृति के अतिरिक्त पशु पक्षी वृक्ष बेलें पुष्प पत्ते तालाब गंधर्व किन्नर नाम नाग अप्सरा गरुड़ आदि का चित्र चित्रण भी कुशलता से किया गया है रामराज जी काजल नील गेरू आदि रंगों का मिश्रण सुरुचिपूर्ण है रंगों को टेंपरा तकनीक से लगाया गया है
एल्लोरा
एल्लोरा महाराष्ट्र राज्य में औरंगाबाद से 29 किलोमीटर कथा अजंता से 135 किलोमीटर दूर स्थित है एलोरा का स्थानीय नाम वेरुल है एलोरा बोर्ड बौद्ध ब्राह्मण और जैन तीनों धर्मों का पावन त्रिवेदी है.
यहां कुल 30 गुफाएं है गुफा संख्या 1 से गुफा संख्या 12 तक बौद्ध गुफाएं हैं वह संख्या 13 से 29 तक ब्राह्मण धर्म संबंधी उपाय हैं गुफाएं है दुशासन ख्याति गुफा संख्या की से 34 तक जैन गुफाएं हैं.
इस गुफा का निर्माण नवीं शताब्दी से लेकर 12 वीं शताब्दी के मध्य हुआ इस प्रकार 900 वर्षों तक एलोरा मैं कार्य होता रहा एलोरा का सर्वाधिक प्रमुख भगवान शिव का कैलाश मंदिर जो की गुफा संख्या 16 में है
इसका निर्माण राष्ट्रकूट राजा कृष्ण ने करवाया था 300 फीट लंबे 50 फीट चौड़े एक विशाल पर्वत को काटकर इसका निर्माण किया गया 135 लोगों ने कार्य किया इस मंदिर के मध्य शिवलिंग स्थापित है इसके निकट ही नंदी का मंडप तथा पार्वती गणेश सुधीर चंद्र और सब मात्र का के छोटे मंदिर हैं मंदिर के अंदर पौराणिक गुफाओं के सुंदर चित्र कथा शिव पार्वती नदी हिंदी शिव पार्वती नंदी महालक्ष्मी इंद्र आदि की प्रतिमाएं हैं
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